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ते माटे तुं साहेब मारो, हुंछ सेवक भवोभव तारो, एह संबंधमां न होशो खामी, वाचक मान कहे शिरनामी.५
५०. तुम दरिशन भले पायो... तुम दरिशन भले पायो, प्रथम जिन! तुम दरिशन भले पायो, नाभि नेरशर नंदन निरूपम, माता मरूदेवी जायो. १ आज अमीरस जलधर वुल्यो, मानुं गंगाजले नाह्यो, सुरतरू सुरमणि प्रमुख अनुपम, ते सवि आज में पायो. २ युगला धर्म निवारण तारण, जग जस मंडप छायो, प्रभु तुज शासन वासन समकित, अंतर वैरी हटायो. ३ कुदेव कुगुरू-कुधर्मनी वासे, मिथ्यामतमें फसायो, में प्रभु आजथी निश्चय कीनो, सवि मिथ्यात्व गमायो. ४ बेरबेर करूं विनंती ईतनी, तुम सेवा रस पायो, ज्ञानविमल प्रभु साहिब नजरे, समकित पूरण सवायो. ५
५१. जगचिंतामणि जगगुरू...
(राग : जगजीवन जगवाल हो) जगचिंतामणि जगगुरू, जगतशरण आधार लाल रे; अढार कोडाकोडी सागरे, धर्म चलावण हार लाल रे.
जग०१ अषाढ वदी चोथे प्रभु, स्वर्गथी लीए अवतार; चैतर वदी आठमदिने, जन्म्या जगदाधार लाल रे.
जग०२ पांचशे धनुषनी देहडी, सोवन वरण शरीर लाल रे;
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