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वर्ष वित्या तारा विरहे हजारा;
ठाम ठेकाणुं तारूं, क्यां जईने पूछें. सूर्यने पूछें तोये जवाब न मले,
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नवलख तारलीया त्यां बोले;
एक अंतरमां वसनारा, प्यारा आदीश्वर. सुंदर तारूं छे पालिताणा धाम,
प्राण समो तुज बालक तार;
निशदिन देजे टकोरो, मुज पापना पतंगो. अंतरनी आशाए तुजने विनववा,
ज्ञानविमलनी ज्योत प्रगटाववा;
नेह नजरे निहालो, तारा सेवकने तारो.
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४४. आनंदकी घडी आई...
आनंद की घडी आई सखी री आज आनंद की घडी आई करके कृपा प्रभु दरिसण दीनो, भवकी पीड मीटाई, मोह निद्रासे जागृत करके, सत्य की सान सुनाई, हो... तन मन हर्ष न माई, सखी री. नित्यानित्य का भेद बताकर, मिथ्यादृष्टि हराई, सम्यग् ज्ञान की दिव्यप्रभाको, अंतर में प्रगटाई, हो... साध्य साधन दीखालाई सखी री.
त्याग वैराग्य संयम के योगसे, निःस्पृह भाव जगाई, सर्वसंग परित्याग कराकर, अलख धून मचाई, हो... अपगत दुःख कहेलाई सखी री.
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