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पू०
सिद्ध चक्र
ह्रीँ
मंडल विधान
हो, तथा जिसके चारो कोणा मे कुभ रक्खे गये हों, एवं भेरी पटह कॅसाल माझ मजीरा के शब्दो के / साथ २ सुदर कुलीन स्त्रियों के गीतो से जो परिपूर्ण है ।
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अथ सामग्रीलक्षणम् ।
स्वभावोत्कर्षणी पूजा नेत्रमा सहारिणी ।
सामग्री शस्यते सद्भिर्निखिलानंदकारिणी ॥ ७ ॥
अर्थ — पूजा अपने भावो - परिणामोको बढानेवाली उनमे उत्कर्ष लानेवाली है । अतएव सत्पुरुषो के द्वारा उसकी सामग्री वही प्रशसनीय मानी जाती है जो हर्ष मे उत्कर्ष करनेवाली हो, नेत्र और मन को हरण करनेवाली हो, सभी को आनन्द के देने वाली अथवा सम्पूर्ण आनन्द का प्रदान करने वाली हो ।
अथ यंत्रोद्धारः ।
अर्थ — इस विधि हुए यत्र की स्थापना करे ।
ऊर्ध्वाधरयुतं सर्विन्दु सपरं ब्रह्मस्वरावेष्टितम्, वर्गापूरितदिग्गताम्बुजदलं तत्संघितत्त्वान्वितम् । अन्तःपत्रतटेष्वनाहतयुतं ह्रींकारसंचेष्टितम्,
देवं ध्यायति यः स मुक्तसुभगो वैरीभकंठीरवः ॥ ८ ॥
अनुसार सिद्ध यंत्र का उद्धार करे । उसकी रचना करे अथवा किसी बने
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