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- लिल्लू का
ही अंडल विधान -
श्रीशुभचन्द्राचार्यकृतम् . श्रीसिद्धचक्रसहस्रगुणीपूजामंडलविधानम् ।
प्रणम्य श्रीजिनाधीशं लब्धिसाम्राज्यसंयुतम् ।
श्रीसिद्धचक्रयंत्रस्यार्चा सहस्रगुणां ब्रुवे ॥१॥ प्रथ यजमानलक्षणम्,
विनीतो बुद्धिमान् प्रीतो, न्यायोपात्तधनो महान् ।
शीलादिगुणसम्पन्नो, यष्टा सोऽत्र प्रशस्यते ॥२॥ अर्थ-विनयशील, बुद्धिमान् , प्रीतियुक्त, न्याय से धन उपार्जन करने वाला, शील श्रादि गुणों से सयुक्त, महान् पुरुष ही जिनागम मे विधान करने वाला यजमान प्रशसायोग्य कहा गया है।
अथ याजकलक्षणम्,
देशकालादिभावज्ञो, निर्मलो बुद्धिमान् वरः ।
सद्वाण्यादिगुणोपेतो, याजकोऽत्र प्रशस्यते ॥ ३॥ अर्थ-देश काल आदि के भावको जाननेवाला, निर्मल, बुद्धिमान्, श्रेष्ठ, समीचीन वाणी आदि गुणों से युक्त याजक जिन शास्त्र में प्रशंसा योग्य माना गया है। १मूलप्रति में 'निर्मलो बुद्धिमान् का निर्मल बुद्धिवाला अर्थ किया गया है। २ मूलप्रति में 'सत्य वचन बोलना', एसा अर्थ किया गया है। वह भी ठीक है।
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