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- (शिक्षु शाहक ही मंडला निधान्न -
प्रथम जयमाला का अर्थ
दुष्कृत-पापरूपी कर्ममलो को जिन्होने सर्वथा नष्ट कर दिया है ऐसे परमेश्वर जिनेश्वर भगवान को प्रणाम और नमस्कार करके भक्तिपूर्वक और अपनी मनःशक्ति के द्वारा सिद्धचक्र की जयमाला का वर्णन करता हूं ॥ १ ॥
. मन मे अच्छी तरह से जो सिद्धचक्र का ध्यान करता है उसका; काले बिखरे हुए ओर भयंकर है शिर के केश जिसके, रूक्ष और दारुण है नेत्र जिसके, ऐसी रक्तवर्ण वाली व्यन्तरीका अथवा ग्रह तथा मूत वेताल आदि का भय नष्ट होजाया करता है ॥ १॥
भीषण है उत्सग-क्रोड-बाहुमध्य और दाढ जिसकी तथा उनके कारण जो विकराल है, जिसके नेत्र चलायमान है, जिह्वा अत्यन्त दीर्घ है, ऐसे विशाल सिंह और दाढवाले सभी जीवों का समूह सिद्धचक्र की भावना करने वाले के वश मे होजाया करता है ॥२॥
रोषयुक्त घोर महाकाल रूप दुष्ट भावों वाले क्रुद्ध आशीविष जाति के सर्प भी उसको नहीं काटते जो मनमे सिद्धचक्र की भले प्रकार भावना किया करता है ॥ ३ ॥