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ड লिधान
ज्वर क्षय गडमाला कुष्ट शूल आदि रोग अथवा श्वास और वातादि व्याधियां उनकी नष्ट होजाया करती है जो मन में सिद्धचक्र का अच्छी तरह चिन्तवन किया करते हैं ॥ ४ ॥
इस सिद्धचक्र की भावना करने वाले को धूमसहित भीषण जलती हुई, जिसके प्रचण्ड स्फुलिंग सब तरफ उड़ रहे है, अग्नि की ज्वालाओ का समूह दग्ध नहीं कर सकता ॥ ५ ॥
कल्लोलो से चचल बहुत तरंगवाली अपार शब्द करती हुई अगाध गंगा सिंधु आदि नदिया उस मनुष्य को पार कर देती है जो इस सिद्धचक्र का मन में चिन्तवन किया करता है ॥ ६ ॥
कशा पाश कुत-बछ भाला शूल आदि धारण करने वाले या जिनके हाथ में धनुष-बाण मिंउमाल है, ऐसे व्यक्ति और चोरों का समूह युद्ध मे उस व्यक्ति को नहीं मार सकते जो सिद्धचक्र का मन मे भले प्रकार चिन्तवन करता है ॥ ७ ॥
अत्यन्त गाढ ओर सधन भी बंधन जिन्होने कि समस्त अगउपांगो को जकड़ रक्खा है खुल जाते है और उन व्यक्तियो की शंखलाएं टूट जाती है जो कि इस सिद्धचक्र का मन मे स्मरण करते है ॥ ८ ॥
उस सिद्धचक्र का निःसग ध्यान करने स आठो ही कमोंका विनाश होता है, ललाट में सुवीर्य प्रकट होता और हाथ में मोक्ष लक्षमी का निवास हुआ करता, तथा जिसके दृष्टि पात से सूर्य के समान
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