________________
-(सिद्ध चक्र
ह्रीं मंडल विधान) -
महान् दृढ मोहकर्मसे सर्वथा,रहित, अपने गुणरूपी सुवर्णकी कांतिसे रंजित, चित्स्वरूप रुचिके धारक, अपने स्वरूपमे ही उत्पन्न, शरीर रहित, सिद्धसमूह.सदा मुझे पवित्र करो.॥ २ ॥, चेतनाके आवरण करनेवाले-ज्ञानावरण दर्शनावरमाके क्षयसे निश्चित है वास जिनका, अनन्त पदार्थीका भेद करके भले प्रकार रहनेवाले, ......................... हे सिद्धसमूह सदा मुझे पवित्र करो ॥ ३॥.................... ॥४॥ सम्यग्दर्शनज्ञानरूप अनंत शक्तिके पिंड, नष्ट कर दिया है विघ्न करनेवाले कर्म समूहको जिन्होने, चित्स्वरूप अनन्त वीर्य गुणके स्वामी अशरीर सिद्धसमूह मुझे सदा पवित्र करो ॥ ५॥ क्षयको प्राप्त हो गया है नाम कर्म जिनका, सूक्ष्मत्व गुणको धारण करनेवाले, अपने निर्मितगुण ही हैं चिन्ह जिनका, चित्स्वरूप सूक्ष्मगुणके स्वामी अशरीर सिद्ध निकाय मुझे सदा पवित्र करो ॥ ६ ॥ अरूपी, अवगाहन गुणसे पूर्ण, चार तरहके आयु कर्मरूप कीचड़से दूर, अनंतगुणोके स्वामी अशरीर सिद्ध निकाय मुझे सदा पवित्र करो ॥७॥ गुरुत्वलघुत्वभावसे रहित, संसार रूपी वनकी दुःसह अग्निका जिन्होंने निरसन कर दिया है, दो प्रकारके अतुल गोत्रकर्मसे रहित स्वामी अशरीर सिद्धनिकाय सदा मुझे पवित्र करो ॥ ८॥ दोनोही तरहके दुःख देनेवाले वेदनीय कर्मके पक्षका जिन्होंने घात कर दिया है, स्वयंका प्राप्त कर लिया है शास्वत सुख जिनने ऐसे बाधारहित गुणोके स्वामी देव अशरीर सिद्धानकाय सदा मुझे पवित्र करो ॥९॥
ANP
स्टे
१-२-इनका अर्थ ठीक २ हमारी समझमें नहीं आ सका । ३-इस जयमालाके दूसरे आदि पद्यमे क्रमसे मोह शानावरण-दर्शनावरण-अन्तराय-नाम-आयु-गोत्र-और वेदनीय इन आठ कमांके अभावसे प्राप्त गुणोंकी अपेक्षा सिद्धोंकी महिमाका वर्णन किया गया है।
AAVAT