Book Title: Siddhachakra Mandal Vidhan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 159
________________ . . - -- --x-eanina POTA -- (लिख चामडल निशान - CLAST १५८ अथ जयमाला। - - - --- MAP SAXI त्रिभुवनपतिपूज्यं पुण्यपापाद्विमुक्तं, विगतकलुपमा छिन्नसंसारभावम् । जगतिपतिसुसेव्यं संयजे भक्तिपूर्वम् , वरशिवसुगुणं तं लोकमूर्धावभासम् ॥१॥ अपारजवंजवजीवनकर्मप्रभेदविदारणकेशरिधर्म । त्रिलोकशिरोयुतपुण्यविबुद्ध महासुखमनमहो जयरिद्ध ॥२॥ अखण्डितचिन्मयशांतिकरण्ड घनकपरोन्नतशक्तिसुपिंड । समुद्भवभीतिविमुक्त समृद्ध, महासुखमनमहोजयरिद्ध ॥ ३॥ सुरासुरमानुपनागपरीज, सुदरितदुर्भरभावसमीज । मुकेवलवोध मुदृष्टिसमृद्ध, महासुखमग्न मही जयरिद्ध ॥४॥ दिवारविचन्द्रविमृष्टविकाश, महोभरभूषित सहजनिरास । विपत्कुलकंदकुठार विक्रुद्ध, महासुखमग्न महो जयरिद्ध ॥५॥ जिनाधिपमाननिरूपितभाव सुसूक्ष्मगुणेश विरूप विराव । विवाध विकस्वरदूरविरुद्ध, महासुखमन महो जयरिद्ध ॥६॥

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