________________
Belar
सिद्ध चक्र
मंडल विधान
(१५)
सुख उत्कृष्ट अमित शाश्वत वह, सर्वकाल में व्याप्त हुआ । निरवधि सार परममुख इससे, उस सुसिद्धको प्राप्त हुआ। जो परमेश्वरपरमात्मा औ, देहविमुक्त कहा जाता,
स्वात्मस्थित कृतकृत्य हुआ, निज, पूर्ण स्वार्थको अपनाता ॥
(१६)
कर्म नाशसे उस सिद्धके, क्षुधा तृषाका लेश नहीं, नाना रसयुत अन्नपानका, अतः प्रयोजन शेष नहीं । नहीं प्रयोजन गन्धमाल्यका, अशुचि योग जब नहीं कहीं, नहीं काम मृदु शय्याका जब, निद्रादिकका नाम नहीं ||
( १७ )
रोग विना तत्शमनी उत्तम, औषधि जैसे व्यर्थ कही, तम विन दृश्यमान होते सव, दीपशिखा ज्यों व्यर्थ कही । त्यों सांसारिक विषय सौख्यका, सिद्ध हुए कुछ काम नहीं, वाधित, विषम, पराश्रित, भंगुर, बंध हेतु जो अदुःख नहीं ॥
७८