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सिद्ध चक्र
ह्रीं मंडल विधान -
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(६) जब वह आत्मा मोहादिक के उपशमादिको पाकर के, बाहरमें गुरु-उपदेशादिक श्रेष्ठ निमित्त मिलाकरके। विमल-सुदर्शन-ज्ञान-चरणमय अपनी ज्योति जगाता है, उस मुशक्ति के प्रबल-घात से घाति-चतुष्क नशाता है।
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(७) तव वह भासमान होता स्थिर-अद्भुत-परम-सुगुण-गणसेप्रकटित हुआ अचिन्त्य सार है जिनका दुरित-विनाशनसे।केवलज्ञान-सुदर्शनसे, अति-वीर्य-प्रवर सुख-समकित से, शेषलब्धिस, भामण्डल से, चामरादि की सम्पत् से ॥
(८) सबको सदा जानता-लखता युगपत्, व्याप्त-सुतृप्त हुआ, घन-अज्ञान-मोह-तम धुनता-सवका सब, निःरवेद हुआ। करता तृप्त सुवचनामृतसे-सभाजनों को औ करताईश्वरता सब प्रजाजनोंकी, अन्य-ज्योति फीकी करता ॥
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