Book Title: Siddhachakra Aradhan Keshariyaji Mahatirth
Author(s): Jitratnasagar, Chandraratnasagar
Publisher: Ratnasagar Prakashan Nidhi

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org विक्रम संवत् के पहले इसी उज्जैनी नगरी में आचार्य श्री आर्यकाल सूरिजी पधारे थे । यहाँ का राजा उन दिनों गर्दभिल्ल था । उसने साध्वी सरस्वती का अपहरण किया था । अतः आचार्य श्री आर्यकालक ने उस आतताई गर्दभिल्ल को सिंहासन से उतार कर उसके स्थान पर शकस्तान के शाहीयों का स्थापित किये थे । ( आचार्य आर्यकालक और गर्दभिल्ल के कथानक को जानने वाले जिज्ञासु मेरी लिखी "जिन शासन के पाँच फूल" पुस्तक का अवलोकन करें) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उसके बाद यहाँ विक्रमादित्य ने अपना शासन जमाया था । विक्रम संवत्सर को प्रवृति आर्यकालकसूरिजी की ही कृपा का फल थी । सिद्धसेन दिवाकर विक्रमादित्य राजा की सभा के ही विद्वरत्न थे । आचार्य श्रीमानतु सूरि ने उज्जैनी के वृद्ध राजा भोज को भक्तामर स्तोत्र की रचना के द्वारा चमत्कृत् किया था । वृद्ध भोज का समय विक्रम का सातवां सैका माना जाता है । विद्वप्रिय परमार वंशी मुंज और भोज के समय में अनेक जैनाचार्य इस उज्जैनी में विचरण करते थे । भोज राजा के समय में शोभन मुनि ने अपने भाई कवीश्वर धनपाल को प्रतिबोधित किया था । धनपाल ने तत्पश्चात 'तिलक मंजरी' वगैरह ग्रन्थों की रचना की थी । आचार्य श्री शान्तिसूरिजी ने उसका संशोधन किया था । धनपाल कवि के आग्रह पर ही शान्ति सूरिजी ने मालवे में विचरण करके भोज की सभा के ८४ वादी जीत कर 'वादी वेताल' का विरुद प्राप्त किया था । इस नगरी की ऐसी अनेक घटनाऐ हैं परन्तु उल्लेखनीय विशेष घटना चार हैं । (१) श्रीलंका से राम लक्ष्मण सीता जी द्वारा श्री ऋषभदेव जी की प्रतिमा उज्जैन लाना । (२) श्री पाल महाराजा और मयणा सुन्दरी द्वारा श्री सिद्धचक्रारा धन द्वारा अपना कुष्ठ रोग निवारण । (३) अवन्ति सुकुमाल द्वाराश्मशान में अनशन के द्वारा नलिनी गुल्म विमान की प्राप्ति । समाधि युक्त काल धर्म व उनके पुत्र द्वारा समाधि मन्दिर श्री अवन्तिं पार्श्वनाथ का जिनालय । (४) अधिष्ठायक श्री माणिभद्र देव का स्थानक । प्रथम श्री सिद्ध चक्राराधन केशरियानाथ महातीर्थ पर दृष्टिपात करें । [३] For Private and Personal Use Only

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