Book Title: Siddhachakra Aradhan Keshariyaji Mahatirth
Author(s): Jitratnasagar, Chandraratnasagar
Publisher: Ratnasagar Prakashan Nidhi
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
" बेटी" तेरे लिये कौन सा वर लाउं " ?
" पिताबी . । यदि आप प्रसन्न हैं तो मै शंखपुरी के राजकुमार अरिदमन को चाहती हूं। मेरे लिये आप अरिदमन का चयन कीजिए।
पुत्री की बात सुनकर राजा ने धूमधाम पुर्वक राजकुमार अरिबमन के साथ सुरसुन्दरी की शादी कर दी।
मासपति ने मयणा से प्रश्न किया
"बेटी .. । तू कहाँ के राजकुमार को अपना जीवन साथी बनाना चाहती है।"
"पिताजी .. | आप यह क्या पूछ रहे हो .... ? कन्या की शादी तो योग्य पति के साथ माता पिता ही करते हैं यह विषय आपका है, न कि मेरा ...।" मयणासुन्दरी ने नम्रता पूर्वक उत्तर दिया।
मालवपति ने पुन: आग्रहपूर्वक पुछा
" बेटी .... । तू जिसे चाहती है उसका नाम मुझे बतादे । मैं उसी के साप तेरी शादी कर दू ...।"
"पिताजी ।मयणा सुन्दरी गम्भीर होकर बोली "आप चाहें उस पति के साथ मेरी शादी कर दीजिये । आप तो निमित्तमात्र हैं पिताजी। बाकी तो मेरे ही कर्म के आधार पर मुझे पति की प्राप्ति होगी। __ "बेटी ।ये कर्मों की बात एक ओर रख दे .... । मैं निमित्त मात्र ही नहीं हूँ । मैं सब कुछ कर सकता हूं। मैं चाहूँ तो रंक को राजा बना सकता हूं। मैं चाहूं तो राजा को रंक बना सकता हूं अतः तू बता मुझे कि तेरे लिये कौन सा वर ले माउं....?"
"पिताजी "। आपका कथन सत्य नहीं है । आप तो मात्र निमित्त ही हैं सुख दुःख का कर्ता तो कर्म ही है? देखिये मेरे ही पुण्योदय से मैं इस राजपरिवार में जन्मी ह.।"
"बेटी " प्रजापाल भपाल की आंखों में क्रोध उमड़ आया" भाज तू मेरे महलों में मौज पर रही है उसका कारण मैं नहीं हूँ ।"
"नहीं पिताजी ! आप तो निमित्त मात्र हैं।" मयणासुन्दरी ने शान्त रहकर ही उत्तर दिया ।
मालवपति के अंग-अंग में आग लग गई । यह कन्या दुर्विनित
[9]
For Private and Personal Use Only