Book Title: Siddhachakra Aradhan Keshariyaji Mahatirth
Author(s): Jitratnasagar, Chandraratnasagar
Publisher: Ratnasagar Prakashan Nidhi
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सम्राटसम आर्य सुहस्तिसूरि जी भद्रा सेठानी की हवेली में आकर ठहर गये । भद्रा माता के हर्ष का पार न रहा ।
दिन तो बीत गया । रात्री प्रारंभ हुई । मुनिवरों ने आवश्यक क्रियाएं करने के बाद स्वाध्याय प्रारम्भ किया। मुनिवृंद के मुख से मुखरित होने वाली अमृतवाणी सम जिनवाणी रात्री के सन्नाटे में - दूर-दूर तक ध्वनित हो रही थी ।
हवेली की उपरी मंजिल पर हवेली का स्वामी अवन्तिसुकुमाल अपनी बत्तीस पत्नियों के साथ विषय भोगों में रत था । उसे यह भी ज्ञात नहीं था कि उसकी हवेली में जैन शासन के सम्राट सूरीश्वर विराज रहे हैं। हां... कहां से ज्ञात होगा ? उसे तो यह भी ज्ञात नहीं था कि कब सूर्य उदित होता हैं और कब अस्त होता है यह भी जिसे मालूम नहीं हो उसे सूरिवर का आगमन कैसे ज्ञात हो सकता है।
अवन्तिसुकुमाल पत्नियों के साथ भोग-विलास के सुखों में लोन था कि उसके कानो में मुनिवृंद के मधुर स्वर टकराये । एक - सी आवाज, एक-सा स्वर, एक सी ताळ...! क्षणभर के लिये अवन्तिसुकुमाल विचार में पड़ गया । यह मधुर ध्वनि कहां से आ रही है इस नीरव शान्त रात्री में....?
पत्नियों को शान्त करके अवन्तिसुकुमाल स्वाध्याय की मधुर स्वरावलियाँ सुनने में मस्त हो गया । स्वाध्याय था देवलोक के वर्णन से भरपूर | देवलोक मे नलिनी गुल्म विमान का वर्णन सुनकर अवतिसुकुमार विचार सागर में गोते खाने लगा "मैंने ऐसा वर्णन पहले कभी सुना है या अनुभव किया है।" एक चिन्गारी चमक कर चली गई । उसी वक्त अवन्तिसुकुमाल को जातिस्मरण ज्ञान हो गया ।
"हां यह तो मेरे ही पूर्वभव के स्थान का वर्णन है ।" इतने शब्द अवन्तिसुकुमाल के मुख से मुखरित हुवे और वह होश खो बैठा । पत्नियां घबरा गई। सभी ने मिलकर शीतोषचार किये तो अवन्तिसुकुमाल होश में आया । अब सारा नलिनी गुल्म विमान उसे स्पष्ट दिखाई दिया । स्वाध्याय की मधुर ध्वनियां अभी भी वैसी ही सुनाई दे रही थीं ।
अवसिसुकुमाल ने उसी क्षण सेवक को बुलाकर पूछा
"अरिजंय....! यह मधुर स्वरों की ध्वनियां कहाँ से आ रही है.... ?
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