Book Title: Siddhachakra Aradhan Keshariyaji Mahatirth
Author(s): Jitratnasagar, Chandraratnasagar
Publisher: Ratnasagar Prakashan Nidhi

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Page 54
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस महामन्त्र का उन्होंने "नमोहंत सिध्दाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यः की रचना कर दी। जब गुरुदेव वादी देवसूरिजी को इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने सिध्वसेन मनि को पारांचित प्रायश्चित दिया अपना प्रायाश्चित पूर्ण करते हवे बारह वर्ष वे जैन मुनि का वेश छुपाकर साधना करते रहे अब उन्हें किसी राजा को प्रतिबोधित करना था वे अवन्तिका पधारे । __ महाकाल का बनाया जिनालय जो हाल शिवालय था वहां जाकर सिध्दसेन दिवाकर शिवलिंग की ओर पर रखकर लेट गये। वहां के पण्डे इससे नागज हो उठे। उन्होंने सिद्धसेन दिवाकर को उठाने का प्रयत्न किया किन्तु वे टस से मस नहीं हुवे । पण्डे वीर विक्रम राजा को सभा में जा पहुँचे । उन्होंने फरियादकी "महाराजा । कोई अवधूत हमारे शिवजी को पैर लगाकर सो गया है । उठाने पर उठता ही नहीं है।'' "यदि वह नहीं समझता है तो उसे कोड़े मारकर बाहर निकाल दो।" विक्रमादित्य का सत्तावाही स्वर गूंज उठा। आज्ञा पाते ही पण्डे कोड़े लेकर शिवालय आये और आचार्य सिद्धसेन दिवाकर सूरिजी को कोड़े फटकारना प्रारम्भ किये । किन्तु फिर भी वे वहां से नहीं हटे । कोड़ों की बोछार होने लगी। ___ इधर वीर विक्रमादित्य के अन्तःपुर में हाहाकार मच गया। रानियाँ नीखने लगी। बचाओं बचाओं की आवाजे गूंजायमान होने लगी। वीर विक्रम के सेबक दौड़े आये। रानियां कह रही थीं कि "हमें बचाओं हमें कोई कोड़े मार रहा है।" कोड़े मारने वाला अदृश्य ही था। वीर विक्रमराजा भी अन्तपुर में दौड़ आया। रानियों के शरीर पर कोड़े पड़ रहे थे। रानियां चिल्लारही थी।" आखिर यह कोड़े कौन मार रहा है ..?" विक्रमादित्य विचारने लगा उन्हें याद आया शिवालय में अवधत को कोड़े मारने का आदेश दिया था मैंने, शायद उसे कोड़े मार रहे होंगे उसका असर यहां हो रहा होगा ? विक्रमादित्य उसी क्षण शिवालय आये। उन्होंने देखा कि वे कोड़े की बौछार कर रहे हैं पण्डे । किन्तु अवधूत तो मस्ती से [43] For Private and Personal Use Only

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