Book Title: Siddhachakra Aradhan Keshariyaji Mahatirth
Author(s): Jitratnasagar, Chandraratnasagar
Publisher: Ratnasagar Prakashan Nidhi
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स्कार की स्मरण करके स्नानादि से निवृत्त होकर सुन्दर वस्त्राभूषण धारण करके बैंड बाजे के साथ साजन महाजन से परिवृत सेठ आचार्य देव श्री हेमविमलसूरि जी को वंदना हेतु उपवन में पहुंचे आचार्य देव को वंदना करके नगर में प्रवेश हेतु प्रार्थना की। आचार्य श्री ने भी माणकशा सेठ की प्रार्थना स्वीकार कर नगर में पधारे। माणकशा सेठ की उपधान शाला में आचार्य श्री ने निवास किया । आचार्य श्री के धर्मोपदेश की गंगा में स्नान करके सेठ ने मिथ्यात्व का मल दूर कर दिया । सेठ ने आचार्य श्री को अपना गुरु देव बना लिया। शुध्द सम्यकत्व का धारण करते हुवे माणकशा सेठ समय व्यतीत करने लगे ।
आचार्य भगवन्त श्री हेमविमलसूरिजी महाराजा ने भी उज्जयिनी नगरी से विहार किया । ग्रामानुग्राम विचरण करते हुवे आप आग्रा पहुँच गये । आग्रा जैन संघ की आग्रहभरी विनति को स्वीकार कर लाभालाभ की दृष्टि से आचार्य श्री ने अपने शिष्यपरिवार सहित आग्रा में ही चातुर्मास किया ।
माणकशा सेठ भी अनेक तरह का किराना भर कर व्यापार हेतु अनेक ग्राम नगर में घूमते हुवे आग्रा आये । व्यापार आग्रा में चालू ही था कि एक दिन उन्हें समाचार मिले कि उनके गुरुदेव आचार्यदेव श्री हेमविमलसूरिजी म. सा. आग्रा में ही चातुर्मासार्थं विराजमान हैं । माणकशा सेठ के हर्ष का ठिकाना न रहा, वे उसी क्षण आचार्य श्री को बंदन करने गये ।
अब प्रतिदिन माणकशा सेठ आचार्य श्री की चिन्तनमयी अमृतवाणी का पान करने लगे ।
एक दिन प्रवचन में गुरुदेव के मुखारविन्द से माणकशा सेठ ने श्री सिध्दाचल महातीर्थ का महत्व सुना । छःरि पालित यात्रा करने से तीन भव में ही आत्मा की मुक्ति होती है यह सुनकर माणकशा ने भी अभिग्रह धारण किया ।
"जब तक मैं छ: रिपालित चलकर सिध्दा गिरिराज की यात्रा न करु तब तक मैं अन्न जल ग्रहण नहीं करूँगा ।"
सेठ के अभिग्रह से आग्रावासी आश्चर्य विभोर हो गये । सिद्धगिरि यहां थी कहाँ ? बास्तव में सेठ ने महान कठिन अभिग्रह धारण किया
था ।
माणकशा ने अपना सारा किराना माल सामान उज्जयिनी की
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