Book Title: Siddhachakra Aradhan Keshariyaji Mahatirth
Author(s): Jitratnasagar, Chandraratnasagar
Publisher: Ratnasagar Prakashan Nidhi

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Page 64
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवन्ति सुकुमाल का अप्रसिद समाधि स्तूप इस्वी पूर्व किसी समय में उज्जयिनी नगर में गंधवती के पास सिंहपुरी में अवन्ति सुकुमाल मुनि का स्मारक विद्यमान था जिसमें मुनि अवन्तिसुकुमाल का स्तूप एवं पार्श्वप्रभु की प्रतिमाजी विराजमान थी। उस समय वहाँ श्मशान था। प्रदेश विरान और जंगल जैसा था। उक्त उल्लेख अनेक ऐतिहासिक इतिहास की पुस्तकों में मिलता है । तो आज वह स्मारक मन्दिर उज्जैन में कहाँ है ? आज तक उज्जैन के जैन धर्मावलम्बि श्रावकों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया है। वैसी भी जैन समाज इतिहास और शोध के मार्ग में शुन्य ही माना जाता है। मुझे जब इतिहास लिखने का सौभाग्य प्राप्त हुवा तो अनेक ऐतिहासिक ग्रन्थ और पुस्तकें पढ़ने का मोका मिला । मेने भी उक्त अवन्तिसुकुमाल के स्मारक के बारे में पढ़ा। मेरे दिल में एक भावना जागृत हुई कि आखिर वह स्मारक कहाँ है? वह आज विद्यमान है या नहीं ..? यदि विद्यमान है को किस स्थिति में है....? इत्यादि अनेक प्रश्नों का समाधान पाने के लिये मेने श्राद्धगुण सम्पन्न सुश्रावक श्री मांगीलालजी मीर्चीवाले का सहयोग लिया। ___अनेक श्रावकों से चर्चाए की। श्री सिद्धचक्राराधन केशरियानाथ महातीर्थ खारा कुआ उज्जैन में ही प्रतिदिन पूजा करने वाला कैलाशचन्द्र नामक पूजारी है। उसने हमारी शोध को सरल बनाया। सन्ध्या के प्रतिक्रमण पश्चात् मैं और मांगीलालजी मीर्ची वाले चर्चा कर रहे थे कि पूजारी कैलाश हमारे पास आया। हमारी चर्चा सुनकर उसने कहा । "महाराज श्री ! मैं सिंगपूरी में रहता है। मेरे घर के सामने रूपेश्वर महादेव का मन्दिर है ..। वहाँ 4 दिन पहले ही मेने द्वार पर अपने मन्दिर जैसी छोटी सी प्रतिमाजी देखी है।" पूजारी की बात सुनकर मेरा मन प्रसन्न हो गया । मेने समय निश्चित करके कहा, "कल व्याख्यान के बाद 11 बजे अपन उस मन्दिर में चलेगें।" पूजारी ने भी हां भर दी। मैं मांगीलालजी को साथ में लेकर सिंहपुरी गया। उसी सिंहपुरी में रूपेश्वर महादेव के मन्दिर पर पूजारी हमें ले गया। For Private and Personal Use Only

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