Book Title: Siddhachakra Aradhan Keshariyaji Mahatirth
Author(s): Jitratnasagar, Chandraratnasagar
Publisher: Ratnasagar Prakashan Nidhi
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बहू के साथ माताभद्रा आचार्य श्री के पास पहुंची । वंदन करके
पूछा:
"गुरुदेव । रात्री में मेरा पुत्र अवम्ति आपके पास आया था ना ? वह कहां है " ?"
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आचार्य श्री ने कहा- "जहां से वह आया था वहीं चला गया है आचार्य श्री ज्ञानी थे ज्ञान से उन्होंने रात्री की सारी घटना जान ली थी। माता भद्रा का दिल दहल उठा पत्नियां मचल उठीं तभी आचार्य श्री ने कहा "वह श्मशान में अनशन कर चुका है ।"
भद्रामाता बहूओं के साथ श्मशान में गई वहां अवन्ति मुनि के देह के टुकड़े टुकड़े देखकर माता तथा बहूओं ने करुण माक्रन्दन मचा दिया ।
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इस दारुण्य घटना घटित होने के बाद आचार्य श्री के उपदेश से प्रतिबोधित होकर माता तथा सभी बहूओं ने एक को छोड़कर क्योंकि वह गर्भवती थी ने संयम स्वीकार किया । व मुनि जीवन की कठोर साधना प्रारम्भ कर दी ।
गर्भवती पत्नि से जो पुत्र हुआ। उसका नाम महाकाल रखा गया । आचार्य श्री को वाणी से प्रेरित होकर महाकाल ने अपने पिता की स्मृति में श्मशान में क्षिप्रा के किनारे पर एक भव्य जिनालय बनवाकर पार्श्वप्रभु की प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई जो कि अवन्ति पार्श्वनाथ के नाम से विख्यात हुई । यह पिता की स्मृति में बनाया गया जिनालय बीर निर्वाण की दूसरी शताब्दी के अन्त में बनाया गया था ।
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काल अविरत गति से प्रवाहित होता है । महाकाल के द्वारा निर्मित जिनालय महाकाल मन्दिर से ख्यात होने पर कुछ जिनधर्म द्वे षियों ने उसे शिव मन्दिर बना दिया । प्रभु प्रतिमा जी के ऊपर शिव लिंग स्थापन कर शिव पूजा प्रारम्भ हो गई ।
का शासन काल रत्न सिध्दसेन थे
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लगभग दो शताब्दी तक यह जिनालय शिवालय के रुप
रहा । जब मालवपति वीर विक्रमादित्य उनकी ही राजसभा के नवरत्न में से एक वादी देवसूरिजी के पास संयम स्वीकार कर जैन मुनि धर्म किया था । अध्ययन करने के बाद उन्होंने सोचा नवकार मंत्र प्राकृत मे है और बहुत लम्बा है में सक्षिप्त में संस्कृत में इसका अनुवाद करदूं ।
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में पूजाता
आया तो जिन्होंने
अंगीकार