Book Title: Siddhachakra Aradhan Keshariyaji Mahatirth
Author(s): Jitratnasagar, Chandraratnasagar
Publisher: Ratnasagar Prakashan Nidhi
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. श्री अवन्ति पार्श्वनाथ महातीर्थ अवन्तिकानगरी में जीवित स्वामी की प्रतिमाजी के दर्शनार्थ आचार्य आयमहागिरि एवं आर्य सुहस्तिसूरि जी अपने ५०० साधुओं के साथ पधारे थे । आयंमहागिरि के बड़े होने पर भी गच्छ का भार मायंसुहस्तिसूरि जी बहन कर रहे थे। उन्होंने उज्जनी में ठहरने की जगह याचने हेतु दो मुनिवरों को नगर में भेजे।
उन दिनों अवन्तिका नगरी काफी समृद्ध थी। काफी दूर से ही नगरी की विशाल अट्टालिकाएं, गगनचुम्बी देवालय एवं भवन को । फहराती ध्वजाऐं इस नगरी की समृद्धि को दृष्टिगोचर करवा रही थी।
दोनों मुनिराज विख्यात श्रेष्ठि अवन्तिसुकुमाल की हवेली पर पहचे अवन्तितुकुमाल तो भौतिक सुख में डूबा हुआ था । अपनी . बत्तीस देवाङ्गना सदृश्य पत्नियों के साथ महल में ही निवास करता पा। उसके मन में उसकी पत्नियां ही सर्वस्व थीं। जगत तो मानों शून्य ही था। घर की सार सम्भाल उसकी माता भद्रा ही करती थी। व्यापार मुनीम गुमास्तों के भरोसे होता था।
दोनों मुनि सेठानी भद्रा की हवेली पर पहुचे तो भद्रा भाव विभोर हो गई। "पधारो गुरुराज ... पधारो....!" भद्रामाता ने मुनिवर को बंदना की।
मुनिवर ने कहा-"श्राविका ! आचार्य मार्यसहस्तिसरिजी अपने पांचसो शिष्यों के साथ जीवितस्वामी के दर्शनार्थ पधार रहे है। उन्होंने हमें भेजा है पसति याचना के लिये।"
| "पधारो गुरुदेव ! मेरे यहां वाहनशाना में बहुत जगह है। मेरा भागन पावन करो...;, भद्रामाता ने हर्षविभोर होते हुए कहा
दोनों मुनिवर भी गुरुदेव को लेने हेतु नगरी बाहर चले गये। सभी मुनिवर भद्रा सेगनी की हवेली की ओर चल दिये। भद्रा सेठानी ने वाहनशाला की सफाई करवा दी। जैन शासन के
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