Book Title: Siddhachakra Aradhan Keshariyaji Mahatirth
Author(s): Jitratnasagar, Chandraratnasagar
Publisher: Ratnasagar Prakashan Nidhi

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Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . आज वर्तमान समय में ज्ञानमन्दिर में १५.००० जैन धर्म को दुर्लभ पुस्तकें हैं । तथा हस्तलिखित अलभ्य ग्रन्थ लगभग ४००० की संध्या में विद्यमान है। इस ज्ञानमन्दिर का उदारवादी उद्देश्य रहा है। यहां अन्य वैदिक .. ज्योतिष .. इस्लाम .. सिक्ख ...ईसाई आदि धर्मों के भी धर्मग्रन्थ संग्रहित किये गये हैं। , विद्वानों का मत है कि मध्यप्रदेश में इतनी बड़ी जैन लायब्रेरी अन्य कहीं भी नहीं है। आज भी यहां जैन अजैन अनेक सज्जन पी. एच. डी. आदि के अध्ययन हेतु आते हैं उन्हें समुचित व्यवस्था उपलब्ध कराई जाती है । ___ विक्रम संवत् २००० में पूज्य गुरुदेव पन्यासप्रवर श्री चन्द्रसागरजी महाराज सो. के सदुपदेश से भोजनशाला के उपर पेढ़ी के मुख्य संचालक श्री अमरचन्दजी छगनीरामजो सिरोलिया ने रु. ५००१) का स्थाई कोष पेढ़ी पर जमा करवाकर अपनी स्व. सुपुत्री की स्मृति में उज्जैन के बालक बालिकाओं के धार्मिक अध्ययन हेतु यहां "श्री मामकुवर जैन कन्याशाला की स्थापना की थी। जो माज तक भी चालू है। चन्द्रप्रभस्वामी जिनालय का जीर्णोद्धार पूज्य गुरुदेव विक्रम संवत् १९९० में सर्वप्रथम उज्जैन में पधारे थे तब यहां मुख्यतया तीन जिनालय थे। श्री मूलनायकजी ऋषभदेवजी का जिनालय श्री चन्द्रप्रभस्वामी जिनालय एवं श्री महावीरस्वामी जिनालय । वैसे तो तीनों मन्दिर जीर्ण ही थे किन्तु श्री चन्द्रप्रभस्वामीजी का जिनालय लकड़ी का बना हुआ था। लकड़िया सड़ चुकी थी। उस समय जो लकड़िया अत्यन्त सड़ गई थी उन्हें बदल दी गई थी व जिनालय योड़ा व्यवस्थित कर दिया था। .. विक्रम संवत् २०१९ में पूज्य आचार्यदेव श्री चन्द्रसागर सूरीश्वरजी म. सा. की प्रेरणा से प्रेरित होकर पेढ़ी के संचालकों ने श्री चन्द्रप्रभस्वामीजी के जिनालय का पुनः जीर्णोद्धार कार्य प्रारम्भ करवाया। नीचे से उपर तक लकड़ियां थी उन्हें निकालकर पत्थर का जिनालय बनवाने का निश्चय किया गया। यह जीर्णोद्धार कार्य अहमदाबाद जोर्णोद्धार कमेटी की सहायता से पूर्ण हुआ। तीन शिखरों से सुशोभित रंग मंडप के गुम्मजों से रलियामना यह जिनायल अति दर्शनीय हो गया। मूल गुम्मज अति विशाल है। मूलनायक श्री चन्द्रप्रभस्वामीजी की पुनः मूलनायक तरीके से पूज्य आचार्यदेव ने प्रतिष्ठा करवाई। [25] For Private and Personal Use Only

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