Book Title: Siddhachakra Aradhan Keshariyaji Mahatirth
Author(s): Jitratnasagar, Chandraratnasagar
Publisher: Ratnasagar Prakashan Nidhi
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.. कन्या एक ही बार शादी करती है । आप मेरे परमेश्वर हैं । अतः भव.इस तरह की अनर्गत बातें कदापि न करें स्वामी " "
उम्बर राणा की आंखों से हर्षाश्रु के दो बिन्दु मोती बनकर गिर पड़े। हर्ष इस बात का था कि देव लोक की अप्सरासे भी ज्यादा रुपवान - राजकन्या ने मेरे जैसे कुष्ठि पति को परमेश्वर मानकर स्वीकार किया है।
शनैः-शनैः रात्री व्यतीत हो रही थी दोनों पति-पत्नि भी नींद के आलिंगन में समा चुके थे।
प्रातः काल हो चुका था। सूर्य की सुरभित किरणें चारों ओर फैल चुकी थी। विहग़वृन्द ने अपनी सुरावलियों से आकाश को ध्वनित कर दिया था। सूर्यदेव भी पति पत्नि की इस जोड़ी को देखने के लिये पूर्वाकाश से झांक रहे थे। . . मयणासुन्दरी को नींद खुल गई । उसने आसन पर बैठकर महामन्त्र नवकार का स्मरण किया। थोड़ी ही देर में राणा भी निद्रा का त्याग करके अपने प्रातः कार्य से निवृत होकर वहां आया। मयणासुन्दरी अभी भी महामन्त्र का स्मरण कर रही थी।
दो घटिका तक महामन्त्र का स्मरण करने के बाद मयणा ने पर्यक पर बैठे अपने पति के चरणों में नमन किया। • राणा तो राजकुमारी का यह विनय देखकर प्रसन्न हो गया। .
मयणासुन्दरी ने कहा- "नाथ "। चलो जिनमन्दिर जाकर माते हैं।" .. · राणा ने जिनमन्दिर का नाम भी शायद पहली बार सुना था किन्तु मयणा में उसे पता हो गई थी। उस आर्यावतं की आवर्श नारी में उसे ज्योति के दर्शन हो रहे थे। उसने मनोमन निश्चय किया था कि मयणा मेरी प्रेरणा है यह जो भी कहेगी मैं स्वीकारूंगा।
थोड़ी ही देर में दोनों नगर के राजमार्ग से गुजरते हवे नगरी के मध्य में स्थित श्री ऋषभदेव प्रभु के जिनालय पर आये। मार्ग में लोगों के टोले के टोले उन्हें अनेक तरह की बात करते हुवे दिखाई दिये थे। कोई मयणा की बुराई कर रहा था कि कन्या ही दुष्ट थी जो उसे फल मिला है। कोई पिता की निंदा कर रहा था कि कन्या कैसो भी हो
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