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विक्रम संवत् के पहले इसी उज्जैनी नगरी में आचार्य श्री आर्यकाल सूरिजी पधारे थे । यहाँ का राजा उन दिनों गर्दभिल्ल था । उसने साध्वी सरस्वती का अपहरण किया था । अतः आचार्य श्री आर्यकालक ने उस आतताई गर्दभिल्ल को सिंहासन से उतार कर उसके स्थान पर शकस्तान के शाहीयों का स्थापित किये थे । ( आचार्य आर्यकालक और गर्दभिल्ल के कथानक को जानने वाले जिज्ञासु मेरी लिखी "जिन शासन के पाँच फूल" पुस्तक का अवलोकन करें)
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उसके बाद यहाँ विक्रमादित्य ने अपना शासन जमाया था । विक्रम संवत्सर को प्रवृति आर्यकालकसूरिजी की ही कृपा का फल थी । सिद्धसेन दिवाकर विक्रमादित्य राजा की सभा के ही विद्वरत्न थे ।
आचार्य श्रीमानतु सूरि ने उज्जैनी के वृद्ध राजा भोज को भक्तामर स्तोत्र की रचना के द्वारा चमत्कृत् किया था । वृद्ध भोज का समय विक्रम का सातवां सैका माना जाता है ।
विद्वप्रिय परमार वंशी मुंज और भोज के समय में अनेक जैनाचार्य इस उज्जैनी में विचरण करते थे । भोज राजा के समय में शोभन मुनि ने अपने भाई कवीश्वर धनपाल को प्रतिबोधित किया था । धनपाल ने तत्पश्चात 'तिलक मंजरी' वगैरह ग्रन्थों की रचना की थी । आचार्य श्री शान्तिसूरिजी ने उसका संशोधन किया था । धनपाल कवि के आग्रह पर ही शान्ति सूरिजी ने मालवे में विचरण करके भोज की सभा के ८४ वादी जीत कर 'वादी वेताल' का विरुद प्राप्त किया था ।
इस नगरी की ऐसी अनेक घटनाऐ हैं परन्तु उल्लेखनीय विशेष घटना चार हैं ।
(१) श्रीलंका से राम लक्ष्मण सीता जी द्वारा श्री ऋषभदेव जी की प्रतिमा उज्जैन लाना ।
(२) श्री पाल महाराजा और मयणा सुन्दरी द्वारा श्री सिद्धचक्रारा धन द्वारा अपना कुष्ठ रोग निवारण ।
(३) अवन्ति सुकुमाल द्वाराश्मशान में अनशन के द्वारा नलिनी गुल्म विमान की प्राप्ति । समाधि युक्त काल धर्म व उनके पुत्र द्वारा समाधि मन्दिर श्री अवन्तिं पार्श्वनाथ का जिनालय ।
(४) अधिष्ठायक श्री माणिभद्र देव का स्थानक ।
प्रथम श्री सिद्ध चक्राराधन केशरियानाथ महातीर्थ पर दृष्टिपात
करें ।
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