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श्रावकाचार संग्रह
व्रत प्रतिमाका वर्णन
पात्र, कुपात्र और अपात्रको दान देनेका फल - वर्णन
दान देना ही गृहस्थ जीवनकी सफलता है।
अपने लिए प्रतिकूल कार्य दूसरोंके लिए नहीं करना ही धर्मका मूल है
उपवासका महत्त्व बताकर उसे करनेकी प्रेरणा
एक एक इन्द्रिय विषयमें फँस कर दुःख पाने वालोंके दृष्टान्त देकर इन्द्रियविषयोंको जीतनेका उपदेश
क्रोधादि कषायों के जीतनेका उपदेश
अन्यायका फल वताकर उसे छोडनेका उपदेश
चारों गतियों में ले जानेवाले कर्म - बन्धके कारणोंका निरूपण
धर्म धारण करनेके फलका निरूपण
जिनेन्द्रदेव अभिषेक और पूजनका फल- निरूपण
जिन - बिम्ब और जिनालय निर्मापणका फल-वर्णन
जिन - मन्दिर में तीन लोकके चित्रादि लिखानेका फल - वर्णन
'अहं' आदि मंत्रों के ध्यानका उपदेश ग्रन्थका उपसंहार और इष्ट प्रार्थना सावय धम्म दोहाका परिशिष्ट
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