Book Title: Shravakachar Sangraha Part 1
Author(s): Hiralal Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 16
________________ ४४३ ४४६ ४५१ विषय-सूची सम्यक्त्वके आठ अंग और उनमें प्रसिद्ध पुरुषोंका निर्देश ४२८ द्यूत आदि सप्त व्यसनोंका विस्तृत विवेचन ४२९ नरकगतिके दुःखोंका विस्तृत वर्णन ४२६ तिर्यंचगति और मनुष्यगतिके दुःखोंका वर्णन ४४० देवगतिके दुःखोंका वर्णन ४४२ दर्शन प्रतिमाका वर्णन व्रत प्रतिमाका वर्णन ४४४ पात्र, दाता, देय और दानविधिका वर्णन दानके फलका वर्णन ४४८ सल्लेखनाका वर्णन सामायिक और प्रोषध प्रतिमाका वर्णन ४५१ सचित्तत्याग आदि छह प्रतिमाओंका स्वरूप-निरूपण ४५३ उद्दिष्टत्याग प्रतिमाका विस्तृत वर्णन ४५४ रात्रिभोजनके दोषोंका वर्णन श्रावकके कुछ अन्य कर्तव्योंका निर्देश ४५६ विनयका वर्णन ४५७ वैयावृत्त्यका वर्णन ४५९ कायक्लेश तपका वर्णन पंचमी व्रतका वर्णन रोहिणी, अश्विनी, आदि अनेक व्रतोंका वर्णन नाम और स्थापना पूजनका वर्णन प्रतिमा-प्रतिष्ठाका विस्तृत वर्णन ४६५ द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावपूजाका वर्णन पिण्डस्थ ध्यानका वर्णन पदस्थ ध्यानका वर्णन रूपस्थ और रूपातीत ध्यानका वर्णन ४७४ अष्टद्रव्यसे जिनपूजन करनेवाला स्वर्ग-सुख भोगकर और वहाँसे चयकर मनुष्य होकर कर्म क्षयकर मोक्ष प्राप्त करता है, इसका विस्तृत वर्णन - ग्रन्थकारकी प्रशस्ति ४८२ सावयधम्मदोहा ४८३-५०५ मंगलाचरण और श्रावकधर्मके कथनकी प्रतिज्ञा ४८३ मनुष्य भवकी दुर्लभता और देव-गुरूका स्वरूप ४८३ दर्शन प्रतिमाका स्वरूप ४८४ अष्टमूल गुण-पालनका उपदेश सप्त ब्यसनोंके दोष बताकर उनके त्यागनेका उपदेश ४८६ । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । ४५६ ४६१ ४६१ ४६२ ४६४ ४७० ४७२ ४७३ । ४८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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