Book Title: Shraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Author(s): Kalakumar
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 11
________________ ( १० ) विशेषांक प्रकाशित हो गया। पश्चात मेरे मन में यह भावना जगी कि क्यों न उक्त अंक में प्रकाशित स्थायी महत्त्व के निबंधों को पूस्तक रूप में प्रकाशित करके उनके स्थायित्व को अक्षण्ण बना दिया जाए। इस सम्बन्ध में मैंने श्रद्धेय गुरुदेव से विचार-विमर्श किया। कहना न होगा, गुरुदेव, राष्ट्रसंत उपाध्याय अमर मुनिजी म. स्वयं जितने बड़ विद्वता के प्रकांड पुरुष हैं, उनके अंतर में गुरु की गरिमा के साथ हो साथ पिता का अन्त:सलिलारूपी प्यार एवं माता की ममता हिलोरें ले रही है, इसे कोई श्रद्धालु एवं निष्ठावान व्यक्ति सम्पर्क में आकर ही जान सकता है। श्रमण संस्कृति के सम्बन्ध में लेखनी उठाने का जो मैं दुस्साहस करता हूँ, यह श्रद्धेय गुरुदेव का ही मेरे प्रति दिया गया आशीर्वाद है । मैं जो कुछ हूँ, गुरुदेव की स्नेहमयी संरचना है, ऐसा कहने में मैं अपने मे एक महान् गौरव को अनुभूति करता हूँ। तो, गरुदेव की प्रेरणा से मैंने इस पुस्तक 'श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना' का संपादन किया। इसमें जिन-जिन विद्वतजनों की सामग्रियों का उपयोग किया है, मैं उनके प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। और आशा करता हूँ, जन-सामान्य से लेकर विद्वन्मण्डली तथा सरकारी स्तर पर इस पुस्तक का सम्मान होगा। यदि यह पुस्तक एक भी व्यक्ति में धर्म एवं अध्यात्म को सच्ची जानकारी दे सकी, तो मैं अपना प्रयास सार्थक एव सफल समझूगा । -संपादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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