Book Title: Shraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Author(s): Kalakumar
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 10
________________ सम्पादकीय 'श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना' का प्रकाशन अपने आप में एक अभूतपूर्व घटना है। भारत में तथा भारत से बाहर विदेशों में प्रकाशित होने वाले अनेकशः पत्रों एवं पत्रिकाओं को मैंने देखा और पाया कि भारत की प्राचीनतम संस्कृति श्रमण संस्कृति पर गहराई से एवं सांगोपांग रूप में अब तक कोई वैज्ञानिक प्रयास नहीं किया गया है। श्रमण संस्कृति के पत्रों तथा इतर श्रमण संस्कृति के पत्रों---किसी के द्वारा भी ऐसा प्रयास नहीं हआ है। हाँ, श्रमण संस्कृतिपरक सामग्रियाँ तो अवश्य ही प्रकाशित हुई हैं, हो भी रही हैं, किंतु उनमें वैज्ञानिकता एवं क्रमबद्धता का विरल प्रयास हो होता है। इस क्रम में मैंने श्रद्धेय गुरुदेव राष्ट्रसंत कविरत्न उपाध्याय अमर मुनिजी म. की बलवती प्रेरणा का महाघ पाकर एक प्रयास किया है। भारत के चोटी के विद्वानों एवं सामान्य जिज्ञासुओं तक से सम्पर्क स्थापित किया । सम्पर्क में मुझे कितना कुछ सहयोग प्राप्त हुआ, लोगों में सहयोग, सहानुभूति एवं किसी महत्त्व के कार्य में साहस एवं बल प्रदान करने की कितनी कुछ भावना है, इसका प्रमाण श्री अमर भारती के श्रमण संस्कृति विशेषांकों के दोनों पुष्प हैं। यदि स्पष्ट कहूँ तो मैं यह निश्चय एवं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि तथाकथित गण्यमान्य चोटी के विद्वानों से लेकर सामान्य जनों तक के बहुलवर्ग में धर्म एवं अध्यात्मपरक जागृति का अभावप्राय है । इसके मूल में मुख्य कारण क्या है, नहीं कह सकता। पुनश्च, भारत के विभिन्न भागों से बहुत सारे विद्वानों ने बड़े ही श्रद्धा एवं स्नेह प्रदान कर श्री अमर भारती के उक्त विशेषांक के प्रकाशन में अमूल्य सहयोग प्रदान किया। उक्त प्रयास यह बताता है कि धर्म एवं अध्यात्म के प्रयास को आगे बढ़ाने में भले दमतोड़ मिहनत करनी पड़े, बड़े-बड़े अवरोधों को पार करना पड़े, किंतु जीवन और जगत् के शीर्ष पर वह आज भी सुशोभित होने का गौरव रखता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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