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स्या
टोका एवं हिन्वी विवेचन ]
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नापि नदारण-नाशयोरित्याहमूलम्-न स्वसंधारणे न्यायाजन्मानन्तरनाशतः ।
जातोऽपि सगभर ना तडेतोस्तत्समुद्भवात् ॥ २६ ॥ न स्वसंधारणे अर्थक्रियास्थापने, न्यायादस्य सामर्थ्यम् । कुतः ? इत्याह-जन्मानन्तरनाशतः उत्पत्यानन्तरं स्वधर्ममादायव स्वस्य नाशात् । न च नाशेऽप्यक्रियायाः तत्सामध्ये सद्युक्त्यायुक्तम् । कुतः १ इत्याह-तद्धेतोस्तत्समुद्भवात्-स्वहेतोरेव नश्वरस्वभावोत्पत्तेः ॥२६॥
[ अर्थक्रिया का धारकत्व और नाशकत्व अनुपपन्न ] अर्थक्रिया जनकस्वभावरूप होने पर अर्थक्रियाजनक में अर्थक्रिया के धारण-स्थापन का भी सामर्थ्य न्यायतः सिद्ध नहीं हो सकता। क्योंकि-'जो प्रक्रिया का जनक होगा उसका जन्म के अनन्तर नाश हो जाता है । अतः जब वह अर्थक्रिया से अभिन्न होगा तो उत्पत्ति के अनन्सर अपने अर्थक्रियात्मकधर्म को लेकर हो नष्ट होगा । अर्थात् उसके नाश के साथ अर्थक्रिया भी नष्ट हो जायगी ऐसी स्थिति में वह प्रक्रिया का धारक कैसे हो सकेगा। इसीप्रकार नाश में भी अर्थक्रिया का सामर्थ्य युक्तिसिद्ध नहीं हो सकता क्योंकि-'जो अर्थनिया का जनक है वह अपने हेतु से हो नश्वरस्वभाव उत्पन्न होता है । जब अर्थक्रिया उससे अभिन्न होगी तो वह भी उसके हेतु से हो नश्वरस्वभाव होगी न कि उससे नश्वरस्वभाव होगी। प्रतः प्रक्रिया का जनक अर्थकिया से भिन्न होने पर अर्थक्रिया का नाशक भी नहीं हो सकता ॥ २६ ॥
२७ वीं कारिका में, अर्थक्रिया स्वजनक से भिन्न है-इस दूसरे प्रकार में दोष बताया गया हैद्वितीयप्रकारे दोपमाहमूलम्-अन्यत्वेऽन्यस्य सामर्थ्यमन्यत्रेति न संगतम् ।
ततोऽन्यभाव एचैतन्नासौ न्याय्यो दलं चिना ॥ २७ ॥ ___ अन्यत्वे अर्थक्रियायाः स्वभिन्नत्वेऽभ्युपगम्यमाने, अन्यस्य हेतोः, अन्यत्र अर्थक्रियायाम् सामर्थ्यम् , इत्यसंगतम् अयुक्तम् , सामर्थ्य-सामथ्यवतोरभेदात् सामर्थ्यवदन्यत्र तदभाशत् । स्यादेतह 'ततः-दण्डादेः अन्यभाव एवघटाधुत्पाद एव, एतत्-सामथ्र्यम् , नान्यदिति अत्राह-नासौं अन्यभावः न्याय्याम्घटमानका दलं विना-तथाभाविनमुपादानमन्तरेण || २७॥
[अर्थक्रिया स्वजनकभिन्नस्वरूप है-दूसरा विकल्प ] अर्थनिया को स्वजनक से अन्य मानने पर स्वजनक का अर्थक्रिया में सामर्थ्य युक्तिसंगत नहीं हो सकता। क्योंकि 'सामर्थ्य और सामर्थ्यवान् में अभेद होता है। इसलिये सामर्थ्यवान से अन्य में सामथ्र्य नहीं रह सकता । आशय यह है कि अर्थक्रियाजनक ही प्रक्रियासमर्थ होता है। अत: अर्थक्रियासामर्थ्य अर्थनियासमर्थ से अभिन्न होने के कारण वह अर्थक्रियाजनकनिष्ठ होगा, न कि इस