Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 5 6
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 184
________________ स्या० के० टीका एवं हिन्दी विवेचन ] योगिताको नीलेतराऽभावः समानावच्छेदकत्वप्रत्यासच्या नीलहेतु:' इत्यपि निरस्तम्, सामानाधिकरण्यस्य व्याप्यवृत्तित्वाच' इत्याहुः | [ 'प्रतिबन्धकता की कल्पना न करने से लाघव' - चित्ररूपवादी ] इस पर यदि यह शंका की जाय कि नीलपीतादि कपालों से उत्पन्न घट में चित्ररूप की उत्पत्ति मानने पर नीलपीतादि रूप की उत्पत्ति को भी आपत्ति होगी क्योंकि समवाय सम्बन्ध से नीलपीतादि के प्रति स्वसमवायिसमवेतत्व सम्बन्ध से नीलपीतादि कारण होता है। अतः इस आपत्ति का परिहार करने के लिये समवायसम्बन्ध से नीलादि के प्रति स्वसमवायिसमवेतत्व सम्बन्ध से नीलेतरादिरूप को प्रतिबन्धक मानना होगा और विनिगमनाविरह से समवाय से नीलेतरादि के प्रति स्वसमवाथिसमवेतत्व सम्बन्ध से नोलमंद को भी प्रतिबन्धक मानना पड़ेगा ।' १६३ तो इस का उत्तर यह है कि नीलनादिरूप जब समवाय से उत्पन्न होता है तब वह स्वाथ्यसम्बन्ध से अपने श्राश्रयभूतवच्य के अवयव में भी उत्पन्न होता है, जैसे, नीलकपाल मात्र से उत्पन्न घट में अब समवाय से नीलरूप उत्पन्न होता है तब यह स्वाभय सम्बन्ध से नीलकपाल में भी उत्पन्न होता है | अतः समवाय से नीलरूप की उत्पत्ति में, स्वाधय सम्बन्ध से नील के प्रति स्वव्यापक समवाय अर्थात् स्व है व्यापक जिस का ऐसा समवाय यानी स्वविशिष्ट समवाय सम्बन्ध से कारणभूत नील रूप का भी संनिधान अपेक्षित होता है । फलतः नीलपोतकपाल से प्रारब्ध होने वाले घट में समवायसम्बन्ध से नीलरूप को उत्पत्ति नहीं हो सकती। क्योंकि यदि उस घट में नीलरूप उत्पन्न होगा तो स्वाश्रय सम्बन्ध से नीलरूप के प्रति स्थविशिष्ट समवायसम्बन्ध से नीलरूप की कारणता में व्यभिचार हो जायगा क्योंकि नीलपीतारब्ध घटनिष्ठ नोलरूप स्वाधयसम्बन्ध से पीत कपाल में भी रहेगा किन्तु उस में स्वव्यापकसमवाय से नीलरूप नहीं रहता । अ: उक्त स्थल में स्वाश्रपसम्बन्ध से नीलरूप के उत्पादक नीलरूप का अभाव होने से समवाय से नीलपीतारब्ध घट में नीलरूप की उत्पत्ति का प्रसंग नहीं हो सकता। इसलिये चित्ररूपवादी के मत में समवायसम्बन्ध से नीलादि के प्रति स्वसमaf समवेतत्व सम्बन्ध से नीलेतरादिरूप को प्रतिबन्धक मानने की भी आवश्यकता न होने से चित्ररूपवाद में महान् लाघव है । [ व्याप्यवृत्ति पदार्थ निरवच्छिन्न होता है ] कुछ लोग नीलपीतारब्ध घट में उत्पन्न होनेवाले नीलरूप की पीत कपाल में अवच्छेदकतासम्बन्ध से उत्पत्ति का परिहार करने के लिये प्रवच्छेदकता सम्बन्ध ले नील के प्रति सामानाधिकरण्यसम्बन्धावच्छिन्नप्रतियोगिताक नीलाभाव को अवच्छेदकता सम्बन्ध 'कारण मानते हैं । नीलपीत कपाल से उत्पन्न होने वाले घट में नीलरूप में नीलेतर रूपाभाव का सामानाधिकरण्य नील कपालावच्छेदेन होता है, पोतकपालावच्छेदेन नहीं होता है । श्रत एव उक्त घटगत नीलरूप में जो नौलेतररूप का सामानाधिकरण्यसम्बन्धावच्छिन्नप्रतियोगिताक अभाव, उस की श्रचच्छेदकता पोत here में न होकर नीलकपाल में हो होती है, अतएव उक्त घट में नोलकपालावच्छेदेन नील की उत्पत्ति होती है, पोतकपालावच्छेदेन नहीं होती है । किन्तु यह भी ठीक नहीं है क्योंकि सामानाधिकरभ्यव्याप्यवृत्ति होता है, अत एव सामानाधिकरण्यसम्बन्धावच्छ्रित प्रतियोगिताक नीलेतराभाव भी व्याप्यवृत्ति ही होगा और व्याप्यवृत्ति का अवच्छेदक होने में कोई प्रमाण नहीं है, प्रतः

Loading...

Page Navigation
1 ... 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231