Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 5 6
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 208
________________ स्या० क० टीका एवं हिन्दी विवेचन ] १९३ [ भेदज्ञान स्वीकारने में अन्ययी ज्ञान सिद्धि से क्षणिकत्व भंगापत्ति ] हठपूर्वक स्वाभिमत न होने पर भी यदि उत्तरक्षण में पूर्वक्षण के सेव का ज्ञान माना जायेगा तो 'उत्तरक्षण पूर्वक्षण सदृश है' यह ज्ञान अनेकग्रहण रूप अर्थात् पूर्वक्षण-उत्तरक्षणग्राही ज्ञानरूप हो और ऐस होने पर ज्ञात का पूर्व और उत्तर क्षणों के साथ सम्बन्ध होने से ज्ञान को विभिन्नकालान्वयी मानना होगा क्योंकि ऐसा न मानने पर मेदज्ञानकाल में पूर्वक्षणरूप प्रतियोगी का जान न होने से पूर्व क्षणभेदज्ञान श्रनुपपन्न हो जायगा । एवं ज्ञान को विभिन्न कालान्वयी न मानने पर प्रदीर्घ पर्यालोचन अर्थात् लोकानुभवसिद्ध कतिपयकालसम्बन्धी ज्ञान की भी अनुपपत्ति होगी, तो इस प्रकार जब उक्त ज्ञान एक विभिन्न कालान्वयी भावात्मक पदार्थ सिद्ध हो गया तो सभी भाव क्षणिक होते हैं यह कैसे सिद्ध हो सकता है ? ||४४ ॥ ४५ कारिका में प्रसङ्गसङ्गतिवश पूर्वोक्त दोष से भिन्न दोष का निरूपण किया गया हैप्रसङ्गात् क्षणिकत्वे दोषान्तरमाह मूलम् - ज्ञानेन गृह्यते चार्थो न चापि परदर्शने I तदभावे तु तद्भावात्कदाचिदपि तत्त्वतः ॥ ४५ ॥ न च परदर्शने - बौद्धमते, ज्ञानेनार्थोऽपि नीलादिरपि गृह्यते = ग्रहीतुं शक्यते, तस्त्वतः परमार्थतः कदाचिदपि । कुतः ? इत्याह- तदभावे तु तद्भावात् नीलाद्युत्पच्यनन्तरमेव ज्ञानोत्पत्तेः अर्थ-ज्ञानयो हेतु हेतुमद्भावाभ्युपगमात् तस्य च पौर्वापर्यनियतत्वात् । एवं वर्तमान संबन्धित्वावगमोऽर्शस्य क्षणद्वयावस्थितित्वं विना दुर्घटः । = जनकोऽथ वर्तमानकालतया नाक्षसंविदि प्रतिभाति, किन्तु तस्यां तत्समानकालभाव्याकारः, तस्य च तथावभासाद् वर्तमानार्यावगमोक्तिरिति वाच्यम्, ज्ञानकाले ब भासमानस्य नीलादेर्ज्ञानाकारताऽसिद्धेः, अन्यथाऽन्तखभासमानस्य सुखादेरप्यर्थाकारताप्रसक्तिः, इति ज्ञानसत्तैबोत्सीदेत् । गृह्यमाणस्य ज्ञानसमानसमयस्य जनकना, जनकस्य च क्षणिकत्वेन वर्तमानतयाऽतीतस्य न प्रतिभासः इति समारोपिताकारग्राहि सर्वमेव ज्ञानमिति सांप्रतम्, नील-द्विचन्द्रज्ञानयोरविशेषापत्तेः । न च बाह्यार्थवादिना तयोरविशेपोऽभ्युपगन्दच्यः प्रमाणाऽप्रमाणविभागविलयप्रसक्तेः । न च ज्ञानार्थयोरेक-सामग्रीजन्ययोः सहभावित्वेन वर्तमानग्रहणं क्षणिकत्वेऽपि वैभाषिकमताश्रयणेनाभ्युपगन्तव्यम्, क्रियानियमस्य कर्मशक्ति निमित्तत्वेन व्यवस्थापितत्वादिति ॥ ४५ ॥ [ क्षणिकवाद में अर्थ ग्रहण की अनुपपत्ति | बौद्धमत के अनुसार भाव को क्षणिक मानने पर ज्ञान से नील आदि पदार्थों का भी तत्त्वतः ज्ञान नहीं हो सकता क्योंकि नीलादि का उत्पत्ति के अनन्तर ज्यों ही बौद्धमतानुसार नीलादि का

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