Book Title: Shastra Vartta Samucchay Part 01
Author(s): Sushilvijay
Publisher: Vijaylavanyasuri Gyanmandir
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। टीकागतपद्यादीनामकाराद्यनुक्रमणिका । २१५ पद्यादि- .. ..............
पत्र-पक्षीः[१०७] "संस्कारशेषोऽन्यः" [पात. १. १८]
३०-२१ [१०८] "संभोगो निर्विशेषाणां०" [भ० गी०.६.२१] १८७-११ [१०९] “स तु दीर्घकाल." [पात० १. १४] . .
२८-१९ [११०] "सत्तातोऽपि न भेदः स्याद्" [ वार्तिककार , १२०-१४ [१११] "सहुजुसुआणं पुण." [ .. . ....३२-२७ [११] “सदेव सौम्येदमग्र०" [ श्रुति ............. ... ११९-२४ [११३] “सर्वत्र पर्यनुयोगपराणि सूत्राणि• [. . ] ४३-२८ [११४] “सर्व ब्रह्ममयं जगत्" [ते. बि. ६. २८.] . १२-१६ [११५] "सर्वेभ्यो दर्श-पूर्णमासौ" [ .. ] ४-६ [११६] "सव्वा वि य पव्वजा." [ . . ] २०४-१९. [११७] "सीसमइमंगलपरिग्गहत्थ." [ विशेषा० भाष्यगाथा- ३०] ८-१५ [११८] "सुखमात्यन्तिकं यत्र.” [भ० गी० ६-२१]. १४-२६ [११९] "सुखानुशयी रागः" [पात० २. ७.]
२८-६ [१२०] "सूक्ष्मविषयत्वं.” [ पात० १. ४५]
३०-३. [१२१] "स्पष्टं प्रत्यक्षम्" [प्रमागनयतत्त्वालोकालङ्कारे २. १] १६७-१३ [१२२] "खगृहानिर्गतो भूयो [. . . ]
१४९-१६ [१२३] "खभावनियमाभावादुपकारो०" [.
. १७७-१.६. [१२४] "खरसवाही विदुषोऽपि०" [ पात० २: ९.] २८-७

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