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४. जब दो वस्तुओं में पारस्परिक भेद रहता है तो उसे 'अन्योन्याभाव' कहते
हैं । जैसे घट और पट दो पृथक् वस्तुएँ हैं । घट पट नहीं है, न पट ही घट है । एक का दूसरा न होने का नाम 'अन्योन्याभाव' है ।
__ ईश्वर तथा मोक्ष के विषय में वैशेषिक तथा न्याय के मतों में पूरा साम्य है।
-स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
. -षड्दर्शनसूत्रसंग्रहः 'अवैदिक-दर्शन'
चार्वाकदर्शन आचार्य बृहस्पति चार्वाकदर्शन के सूत्र प्रणेता माने जाते है । चार्वाकदर्शन, लोकायतमत-नास्तिकदर्शन इत्यादि नाम से भी प्रसिद्ध है । चार्वाकदर्शन के कोई इष्ट देव नही है । न धर्म है, न पुण्य है न पाप है क्योंकि धर्मादिका आधार, पुण्यपाप का कर्ता आत्मा स्वतन्त्र पदार्थ नहीं है । परलोक, निर्वाण इत्यादि चार्वाक के मतानुसार कल्पित पदार्थ है । जो कि अज्ञ जीवो को भयभीत करने के लिये कल्पित किये गये है।।
वस्तुतः पृथ्वी, जल, तेजस्, वायु यह चार जगत् के मूल तत्त्व है । इस चार तत्त्वो के सम्मिश्रण से ही शरीर इन्द्रिय या विषय (पदार्थ) का सर्जन होता है । चैतन्य, इन्हीं चार तत्त्वो के विशिष्ट संयोजन का परिणाम है । जिस तरह सड़ा हुआ अनाज, शर्करा इत्यादि तत्त्वो के सम्मिश्रण से मदिरा में मदशक्ति उत्पन्न होती है उसी तरह चार तत्त्वों के संयोजन से चैतन्य उत्पन्न होता है । और चार तत्त्वों के विघटन से चैतन्य नष्ट होता है । मृत्यु के बाद चैतन्य का अस्तित्व नहीं रहता । ..
चार्वाक सिर्फ दृश्यमान भौतिक जगत् की सत्ता का स्वीकार करता है । केवल प्रत्यक्षप्रमाणवादी होने से परलोक मुक्ति इत्यादि पारलौकिक सत्ताओं का निषेध करता है ।
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