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परमाणुओं से बने हुए हैं । ये परमाणु भौतिक हैं । इनका विभाजन तथा नाश नहीं हो सकता । परमाणुओं की सृष्टि नहीं होती । वे शाश्वत हैं । किसी भौतिक पदार्थ के सबसे छोटे छोटे टुकड़ों को जिनका और अधिक विभाजन नहीं हो सकता, 'परमाणु' कहते हैं । आकाश, दिक् तथा काल अप्रत्यक्ष द्रव्य हैं । ये एक एक हैं, नित्य तथा विभु हैं । मन नित्य है, किन्तु विभु नहीं । यह परमाणु की तरह निरवयव है । यह अन्तरिन्द्रिय है। यह बुद्धि, सोचना तथा सङ्कल्प जैसी मानसिक क्रियाओं का सहायक होता है । मन से एक साथ एक ही अनुभूति हो सकती है, क्योंकि यह परमाणु की तरह अत्यन्त सूक्ष्म होता है । आत्मा शाश्वत तथा सर्वव्यापी द्रव्य है । यह चैतन्य भी सभी अवस्थाओं का आश्रय है। मनुष्य को मन के द्वारा अपने आत्मा की अनुभूति होती है। सांसारिक वस्तुओं के निर्माता के रूप में ईश्वर का अस्तित्व अनुमान से सिद्ध होता है ।
'गुण' उसे कहते हैं जो केवल द्रव्यों में पाया जाता है । गुण को गुण नहीं होता, न उसे कर्म ही होता है। द्रव्य निरवयव हैं, किन्तु गुण को द्रव्य की अपेक्षा रहती है । गुण कुल चौबीस प्रकार के हैं-रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, शब्द, सङ्ख्या , परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, द्रवत्व, स्नेह, बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, गुरुत्व, संस्कार, धर्म तथा अधर्म ।
'कर्म' गत्यात्मक होता है । गुण के सदृश यह भी केवल द्रव्यों में पाया जाता है। कर्म पाँच प्रकार के होते हैं-उत्क्षेपण, अवक्षेपण, आकुञ्चन, प्रसारण तथा गमन ।
किसी वर्ग के साधारण धर्म को 'सामान्य' कहते हैं । सभी गौओं में एक समानता है जिसके कारण उन सबों की एक जाति होती है तथा उन्हें अन्य जातियों से पृथक् समझा जाता है । इस सामान्य को 'गोत्व' कहते हैं। किसी गो के जन्म से न तो गोत्व की उत्पत्ति होती है न तो उसके मरन से उसका विनाश हो होता है । अतः 'गोत्व' नित्य है ।
नित्य द्रव्यों के पार्थक्य के मूल कारण को 'विशेष' कहते हैं । साधरणतः वस्तुओं की भिन्नता उनके अवयवों तथा गुणों के द्वारा की जाती
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