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बौद्धदर्शन : बौद्धदर्शन के आद्य प्रणेता और देवता गौतम बुद्ध है । क्षणिकवाद और संघातवाद बौद्धदर्शन के मूलभूत सिद्धांत है । ‘पदार्थमात्र का वास्तविक अस्तित्व केवल एक क्षण का है।' यह क्षणिकवाद है । और ‘पदार्थमात्र, परमाणुओं के समूह से निष्पन्न आकार स्वरूप है । परमाणु से स्वतन्त्र पदार्थ का कोई अस्तित्व नही' यह संघातवाद है । आत्मा भी मानसिक प्रवृत्तिओ के पुंज स्वरूप ही है।
क्षणजीवी परमाणुओं के स्कन्ध शाश्वत और अवयवी होने का भ्रम उत्पन्न करते है इसीलये दुःख रूप है । बौद्धदर्शन में चार आर्यसत्य का प्रतिपादन है । दुःख, दुःखसमुदय, दुःखनिरोध, दुःखनिरोधमार्ग । दुःख इसमें प्रथम है । दुःख के पाँच भेद है । रूप, संज्ञा, वेदना, संस्कार और विज्ञान।
(१) रूप :-गुरुत्व धारक और जगह रोकनेवाला पदार्थ रूप है । पृथ्वी, जल, तेज वायु और तज्जन्य शरीर रूप पद से विवक्षित है ।
(२) नाम :-रूप से विरुद्ध धर्म 'नाम' के होते है । नाम का अर्थ है मन और मानसिक गतिविधि ।
बौद्धमत के अनुसार आत्मा नामरूपात्मक है । अर्थात् शरीर-मन, भौतिक और मानसिक प्रवृत्ति का समुच्चय है । स्वतन्त्ररूप से चेतना स्वरूप या चैतन्य का अधिष्ठाता नहीं ।
(३) संज्ञा :-पदार्थ का साक्षात्कार करना 'संज्ञा' है ।
(४) वेदना :-संज्ञा = पदार्थ के अनुभव से जन्य सुख-दुःख या उदासीनता के भावको वेदना कहते है ।
(५) संस्लार :-स्मृतिकी हेतु और अनुभव जन्य मानसिक चेष्टा संस्कार है ।
(६) विज्ञान :-लोक द्वारा चैतन्य पद से जिसका व्यपदेश होता है, बौद्ध मतमें उसको विज्ञान कहते है, विज्ञान और संज्ञा में निर्विकल्प और