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३६ श्री उत्तराध्ययनसूत्रनी सज्झायो. संयम लीध ॥ प्राण गु० ॥५॥ नाथ हुस्युं हुं ताहरो। जोगव नरना जोग प्रा० ॥ माणस जनम उहेलमो । जोगतणा संयोग ॥ प्राण गु० ॥ ६ ॥ नाथ नहीं कोई ताहरे । म नाषे मुनिराय प्रा० ॥ नूपति अचरिज संजली। मन ससंत्रम थाय ॥प्राण गुण ॥॥हाथी घोमा माहरे, अंतेउरी परिवार प्रा०, केम अनाथ कह्यो तुमे, जगवन मृषा निवार ॥प्राण गुण ॥ ७॥ तुं न लहे पर एहनी, संजल माहरी वात प्राण ॥ अथिर रिटिनो गर्व म आणिस, धर्म सरिस धर धात ॥प्रा० गु० ॥ ए ॥ कौसंबीपुर मुज पिता, बहु धन तसु - वास प्रा० ॥ पीमा एक दिन उपनी, दाह सूलने खास प्राण गु॥॥१०॥ वैद्य घणा तिहां श्रावीया, करे औषध उपचार प्रा० ॥ दुःख न टाली को सके । एह अनाथ प्रकार॥प्राण गुण ॥१९॥मातपिता लाइ सगा। बहिन प्रमुख परिवार प्रा०॥ पुःखथी कोइ न बोमवे। एह अनाथ प्रकार ॥ प्राण गुण ॥१२॥ तो में मन मांहे चिंतव्यु। थाय प्रजाते समाध प्राण ॥ तो निश्चे