Book Title: Sazzay Sangraha Part 01
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Gokaldas Mangadas Shah

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Page 249
________________ २३६ श्री थावच्चा कुमर सज्झाय. घणुं । तव कुमर न बोले ॥ १० ॥ जण ॥ नयर तु. म्हारे धामिनो। जय रहिण न जा॥ काळ पुरुष ए घर तणो । कहिनें लीधो माश् ॥ ११॥ जण ॥ परि जाणी माधव हसे । ए जग वटि चाले ॥ त्रिजुवन माहे न बटीये । ए नय कुण टाले ॥१२ ॥ ज०॥ कुमर नणे तिहां जाश्सुं । जिहां निरनय थासु ॥ 3जल गिरि सिरि नेमिनाथ । संयम दरिस्युं ॥ ॥ १३ ॥ ज० ॥ तव माधव मामी एम नणे । तिहां विषम आचार ॥ कदली कोमल काय तुझ । किम जालसे नार ॥ १४॥ज०॥ खमग धारे सुखि चालोये । पीजे दवनी काल ॥ पण संयम ने दोहिबुं । वन ! तूं सुकुमाल ॥ १५ जण ॥ कुमर जणे विषमुं सहु । जे धीर न थाय ॥ सिंह तणीपरे आगमे । तेने किसुंय न थाय ॥ १६ ॥ ज० ॥ धन गर्ना तुझ मामली। श्री कृष्ण प्रसंसे । रतन पुरुष तूं जाश्यो। त्रिजुवन पय नमसे ॥ १७ ॥ ज० ॥ सहस पुरुष स्युं परिवयों लीधो संयम नार ॥ चौद पूरवधर नेमिसीस । गयो

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