Book Title: Sazzay Sangraha Part 01
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Gokaldas Mangadas Shah

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Page 262
________________ श्री किरिया स्थानक सज्झाय. २४९ एक थकी अविरत ॥ प्राणहनन यादें वली अंते जासु मिहन्त ॥ ३४ ॥ आरिज ते पुण जि नएया समकित दृष्टी जेय । अणसण करि बेने मरे बाराधक ति तेय ॥ देवलोक सुख जोगवे अनुक्रमे मोह लहे | जंगा जे जिए माहे मिले हिव तसु नेद द कहे ॥ ३५ ॥ सर्व थकी जे अविरत तेय अनारिज हो । सर्व थकी जे विरतीय खारिज कहिये सोइ ॥ विरताविरती श्रावक ते पुण खारिज जोइ । एसघला एकठ करी थानक गणिये दोइ ॥ ३६ ॥ धर्म अधर्म्म उपशमवली अनुपसंतने नेद् । अधर्म्म पक्षमा हि त्रण से त्रेसठ अधिक प्रजेद ॥ किरिया एकसो अस्सीय क्रिय चउरासी मान । सत सव अन्नाणिय वेणिय बत्तीय मतगान ॥ ३७॥ प्रज्ञादिक जू जूा वदे बेठा मंगलिबंध | गनि पात्र लेइ या वियो च्यारिज तसु संबंध ॥ समासे ही बोले धरो प्रवाक हाथ । निजादिक मत करो एम सुणि मंगयो हाथ ॥ ३८ ॥ ततखिए ति पाठो कर्यो कर तब बोल्यो आर्य । तुम्हां पाठो खांचियो जाषे तदा नार्य ॥ I

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