Book Title: Sazzay Sangraha Part 01
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Gokaldas Mangadas Shah
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श्री थावच्चा कुमर सज्झाय.
॥१॥ जणणी मन आस्या घण।। पूरे जोग संयोग ॥ बत्रीसे अंते उरी। विलसे सुर जोग ॥२॥ जण ॥ एक दिन बेगे मालीये । नरनां बहु रूप ॥ मामिय पूछे तिहां कहि ? । ए सयल सरूप ॥३॥ जाण ॥ बीजे दिन तसु घरसुणी । बहु सोक अपार ॥ एक नर चिहुं ऊपामीयो । ए कवण आचार ॥४॥ जण ॥ माय हकारी पूबीऊ । नाटक सुं एह ॥ काले तम्हे जे पूबिलं । नर मूवो तेह ॥५॥ जण ॥ लीलापति कुंवर जणे । मरें किम माय ॥ यम धामि
आवी करी । वन ! ले जाय ॥ ६ ॥ जण ॥श्हापोह जागीयो । पामी वैराग ॥ मामी ! अम्ह रहिवा तणु । नही मंदिर लाग ॥७॥ जण ॥ कुमर वचने मा पुख धरे । ग राउलि रावें । केशव वात सुणी सवे । तसु मंदिर आवे ॥ ॥ जण ॥ श्रीकृष्ण खोले लीये । माइ करे विलाप ॥ नयण नीर पाए ढले । वह ! तुं सुकुमाल ॥ ए॥ जण ॥ मुज जीवन तुं लहुयम् । एम कां मममोले ॥ माधव मनावे

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