Book Title: Sazzay Sangraha Part 01
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Gokaldas Mangadas Shah

View full book text
Previous | Next

Page 246
________________ श्री ब्रह्मचरी सज्झाय. २३३ मोतो ते करे विराम ॥ १३ ॥ संनेपाती खानें को घृत पाय | तेहने नेपात अधिकं याय ॥ म ब्रह्मचारी सरसो जिमे । सूतो सुहिणे शीलज गमे ॥ १४ ॥ नविकरवो यति मात्राहार | आहार करे निद्रा व्यापार ॥ निद्रा मांदे विकलथ्यो परे । शीलवान थकी खमहमे ॥ १५ ॥ सेरनी हांमी बसेर खीचमी । खोरे तो फाटे तोलमी ॥ तेम ब्रह्मचारी जिमे यति मात्र शीलगमे ने विणसे गात्र ॥ १६ ॥ चूत्राचंदन अगर कपूर । सयर सुश्रुषा परिमल पूर ॥ वेढ मूंदमी वेश सफार| शीलवंत न करे सगार ॥ १७ ॥ दालिजी करे च रतन । धोये पखाले करे यतन ॥ जण ‍ ने देखा जाए । उमाली तब लीधो राइ ॥ १८ ॥ तेम ब्रह्मचारी देहज धोवे । स्त्री देखीने वाल्हो होवे ॥ जे जे देखी कर जिलाष । होइ खंपण लजावे साख ॥१८॥ उपत्रास उणोदरी बहु तप करो। सूधो शील सहु मन धरो ॥ मनना मेल्दो सहू सवाद । न सुणो गीतवाद ने नाद ॥ २० ॥ एकलो एकली स्त्रीसुं वात । न करे न जाइ

Loading...

Page Navigation
1 ... 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264