Book Title: Sazzay Sangraha Part 01
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Gokaldas Mangadas Shah

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Page 257
________________ २४४ • श्री किरिया स्थानक सज्झाय. तसु मन रमे ए। क्रोध मान माया लोन, इण अन्नाणीय, आले नरजव नीगमे ए॥ नवमो किरिया गण, माण निमित्तए, जात्यादिक मद उससे ए । गर्व करी मन माहि, परने निंदेए, गर्दादिक वलि खिससे ए॥१७॥ ए दरिस हुं श्रेष्टि, ए कुल होनोए, हुं अधिको गारव धरे ए । तस फल नीचो गोत्र. परनवे पामेए, नीच तणो कारिज करें ए ॥ गर्न थकी वलि गर्न, जनम थकी जन्म, मार थकी मारज लहे ए। स्वत्र थकी वलि स्वत्र, सूयगमंग सुणी, नवियण मान न मन वहेए ॥१५॥दसमुंकिरिया गण, जिम को मानव, घर कुटुंब साथें वसेए । मातादिक अपराध, देखीय लहुतर, तसु मुख देवा उससे ए॥ सीतोदक सीतकाल, गंटे ग्रीषम, उसण अगणि ते जालिये ए। जोत्रादिक लेइ हाथ, क्रोध घणो करी, पशु पामां उदालिये ए ॥२०॥ दंमादिकना घात, तसु देहिये करें, किं बहुना जीवित हरेए ।मातादिक सवि कोइ, तसु संगति रह्या, उर्म न हुए चालें ठरें ए॥ एहवा नर बहू काल, सजन परानव, पाप कर्म घण आ

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