Book Title: Sazzay Sangraha Part 01
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Gokaldas Mangadas Shah

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Page 259
________________ २४६ श्री किरिया स्थानक सज्झाय. पाली वलीए । आयु तो अवसान, काल करी लढे, यासुरीयादिक गति रलीए | तेहथी चवण लदेवि, मूक बधिर हुवे, जिहथी वाणी संजलीए ॥ २५ ॥ ( ढाल ) ( देशी. चालती तथा त्रुटकनी. त्रिभुवन प्रभु रे मह्नि जिणंद जुहारिये, ए रागमां ) इरियावदीरे तेरम यानक जिन कही । जे साहुरे आतम अरथी ति लही ॥ पण समितें रेसमितो त्रिहुं गुपतें जुतो । गोपवियारे इंद्रिय पंच ब्रह्मे तो ॥ - आयुक्त चाले रहे बेसे सुए गुंजे जास ए | वस्त्रादिकतने हे मूके तासु इरिय प्रकासए ॥ सा पढम समए बद्ध फरसी वितीय समए वेदः । त्रीजे समे निर्झरिय इषिपरे कर्म्म लागो बेद ॥२६॥ तसु प्रत्यय रे सावध लागे श्रुते कह्यो । लघु कर्मी रे सम्यग्दृष्टि ते सद्दयो || अरिहंता रे हुआ था वरते जे हुये । तेर किरिया रे नापी जाषे जापिसे ॥ - एक इरियावहिया किरिय जिनवर सेवी सेवसे । कायादि जोगें तेय लागे चौदमे ते निषेधसे । पुए तेहनो उपदेस न दिये करण रूपे जिवरा । उपदेश दीघो

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