Book Title: Sazzay Sangraha Part 01
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Gokaldas Mangadas Shah
View full book text
________________
श्री किरिया स्थानक सज्झाय. २४५ चरीए। मित्र दोष असंतोष, विणु बालोश्य, पुर्गति पामे पाधरीए ॥१॥ माया निमित्त विचार, किरिया थानक, एहवा नर ते जाणिये ए । गूढाचार ऊलूक, पंख वहाए, पर्वत जिम गुरु माणिये ए ॥ आर्य उता अनार्य, जाषा बोलें ए, पूठया सूधुं नवि कहे ए। जिम कोश् सूर ससब, अंतर साले ए, नवि काढेला जे वहे ए ॥ ॥ण दृष्टांते पाप, माया वीकरी, जाणी मनस्युं उलवे ए । बालोवे नहू आप, पमिकमणादिक, विणु कीधे निज बोलवे ए ॥ तसु फल विषम अपार, काल अनंतो ए, पुखियो थाए जीवमो ए। एम संजलि जिन वाणी, माया परिहरे, सुख पाने ते विहलमो ए॥३॥ हिव बारमो संजाल, लोन तणे वसे, किरिया लागे जीवने ए। पुरुष तणो दृष्टांत, आरण्या दिक, परिव्राजक परदर्शने ए॥ त्रस थावर जग जेय, तेहना वध नणी, मिश्र वचन तणे नाषिये ए। हननादिक मुफ मुख, तुम्ह नवि करवो ए, अवर हणो एम दाखिये ए ॥ २४ ॥ सेविय विषय कषाय, वर्ष घणा लगे, प्रव्रज्या

Page Navigation
1 ... 256 257 258 259 260 261 262 263 264