Book Title: Sazzay Sangraha Part 01
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Gokaldas Mangadas Shah
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२४० श्री किरिया स्थानक सज्झायो. तिथंकर चोवीसमो तासु सीस सोहम्म सामिय । पंचम गणधर तसु निपुण विनेय वमो जंबूय नामिय। पूडे ते विनय करी गुरुने किरिय विचार । गुरु नाषे जिम संजली। तेहना तेर प्रकार ॥ १ ॥ (हाः-) तिण विण जाणे प्राणियो। नमियो नवह अपार ॥ जवियण जण ते संजली । करे तासु परिहार ॥२॥ तसु संखेप थकी कह्या । नेद धर्म अधर्म ॥ उपशम ते धर्मे मिल्यो । बीय अधम्मि ए मर्म ॥३॥ अधर्म पक्ष पहिलु सुणो । तेहना बहल प्रकार ॥ दिशि विदिशि जे नर अडे । आयरियादि संसार ॥४॥ उंच नीच गोत्रं वली। अंते सुरूवारूव॥कर्म अनारिज जे करे। अर्थे दंम सरूव ॥५॥ चिहुंगति माहें पामिये । तेरह किरिया गण ॥ सामान्ये एम नाषियु । हिवे विशेष विनाण ॥ ६ ॥ बारह किरिया त्रिहुं गतियें । निरय तिरिय सुर माहि ॥ रियावही नर विणु नही । तेह वलि साहु सुसाहि ॥७॥ (ढालःदोढी ) अश्रणछा दंग, हिंसा अकल्याए, दृष्टि त्रम

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