Book Title: Sazzay Sangraha Part 01
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Gokaldas Mangadas Shah

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Page 254
________________ श्री किरिया स्थानक सज्झाय. २४१ I वलि जालिये ए । मोस दत्त अब, माणति नव मिय, मित्रदोस मन पिये ए ॥ मायालोनं निमित्त, बारह किरियाए, साधु ते जाणी टालवीए । तेरम किरिया ठाण, राग रहित तेणे, समे समे संजालवीए ॥ ८ ॥ पहिलं किरियाठाण, यामन्या तीय, गृह परिवार जी करे | मित्र नागवलि भूत, जह हेतेहिं, त्रस यावर प्राणी हरेए | परने ये उपदेश, हणो वधो तुम्हे, वलि कीधो अनुमोदियेए । तसु निमित्त सावद्य, लागे जीवने, इणिपरे जव किम बेदियेए ॥ ए ॥ बीय अण्डा दम, स्वारथ पाखेए, मंद बुद्धि त्रस मारिये ए । देह का जिननें मंस, सोणित हियकुंए, पित्त वसा संसारिये ए ॥ पिठ मुल वलि सिंग, वाल विसाण ए, दंत दाढ नख न्हारुयाए । अस्थि स्थि मादि, विणु पर जोगेहिं, हणे हणावे कारुयाए ॥ १० ॥ दण्यो न हणतो कोइ तसु सयणादिक, हिवमां हणस्यें नहु पढेए । पुत्र पशुय नहु प्रेष्य, गृह समणादिक, तेहनो कारण नवि काठेए || निज शरीर

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