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१२४ श्री अढार पापस्थान परिहारनी सज्झायो. माण ॥ रुली रजा महासती। कूमे वचन विनाण रे॥ ॥५॥ अ॥ थया जमाली कलमषी। एक उत्सूत्र प्रमाण ॥रूपीने लखमणा नम।। बोली कूमी वाण रे॥ ॥६॥०॥ रागछेष हिय धरी । म नरो कूमी साख । असत्य बोला' रसवशे। मिच्छाबुक्कम नाष रे ॥७॥ अ०॥ धोज पतीज जिको धरे। सत्ये सूके तेह। मंत्र तंत्र विद्या फुरे। सत्य आधारे जेह रे॥७॥ अ॥ पंमितपणा तणो घणो । मन आणि अहंकार ॥ नाषा असत्य न टालस्य। ते रुलस्ये संसारो रे।ए॥ अ॥ मुख रोगोने बोबमो।मूंगो असत्ये होय ॥ वदन सरंगू तसु सदा। सत्य वदे जे कोई रे ॥१०॥ अ॥ वधे विरोध न जेदथी। पर जीव नहु पीमाय ॥ वचन विचारी बोलीये। धर्म अधिक जिणे थाय रे ॥११॥अ॥ अव्य देत्र काल नाव । जोर लान विशेष ॥ सत्य वचन जे उचरे। तसु सत्यवादी रेख रे ॥१२॥०॥ हितकारी सर्व जीवने। सत्य कहीजे जेय ॥ बीज सत्य समकित तणूं। श्री ब्रह्म कहे कहो तेय रे॥१३॥अति ॥