Book Title: Sazzay Sangraha Part 01
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Gokaldas Mangadas Shah
View full book text
________________
श्री केशिप्रदेशीप्रबंध - स्वाध्याय.
२२१
विहमे पढे ॥ ५० ॥ इसुं जाणि असण दरी, पावठाण सहुए परिदरी, सूरियान पाम्यो विमाण, पहिले कल्पे एहनो ठाण ॥ ५१ ॥ सना उववाय सेज उतपात, तेह उपनो विश्व विख्यात; अंतमुहूरते पूरो देह, मुखि कमाणि थयो गुणगेह ॥५२॥ उठी सेजे वेगे थइ । चित्त चिंतवे देवगति लह| || पहिलो मुऊनें करिवो किसुं ? । पबे किसुं ? ते त्रिमासे इसुं ॥५३॥ किं मुऊ ? पहिलं पले श्रेय । हित सुख निश्रेयस थए जेय || ते मुऊ पहिलं पत्रे हुस्ये । स्युं शुभ मुऊ पूवें
ये ॥ ४ ॥ इण अवसर सामानिक देव । चार सहस तसु करता सेव ॥ चिंतित जाणी यावी तिहां । विनय वचन बोले प्रजु ! इहां ॥ ५५ ॥ तुम्ह विमाण सासय प्रासाद । नित जिहां डुहि गीत निनाद ॥ जिनप्रतिमा महिय शत एक । तिहां वे जाणो तुम्हे बेक ॥ ५६ ॥ वली स्वामि ! सोहम्मी सना | सना माहे जसु मोटी प्रजा | माणवक नामें चेईय थं । समकित शील तो अवगंज ॥ ५७ ॥

Page Navigation
1 ... 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264