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वरस मथपणेरे, वरस आठ लगें केवल थाय ॥५॥ तीरथ० ॥ सो वरसनुं सरव श्राखुरे । इहलोक परलोक साध । गणपति शिष्य हरजी जणे रे । कर चिंतामणि लाभ ॥ ६ ॥ तीरथ० ॥ इति ॥
| श्री मंमित पुत्र गणधर सज्जायम् ॥ ६ ॥ ( अइय अनंत चोवीसी - ए देशी. )
asो गणधर जाणो । मंमित पुत्र वखाणो ॥ मौरिज संनिवेशे जायो | धनदेव तात कहायो ॥ १ ॥ विजयादेवीय मात । मघा नखत्र विख्यात ॥ गोत्रज वासिष्ट गायो । मन वंबित फल पायो ॥ २ ॥ वरस पन ते घर रहियो । पुनरपि चारित ग्रहियो ॥ त्रसे शिष्य पचास | पूरे वंबित खास ॥ ३ ॥ वरस चौद द्मस्थकाल | सोल वरस केवल पाल ॥ सर्व आयु वर्ष सत्यासी । थासे शिवसुख वासी ॥ ४ ॥ बंध मोक्ष संशय टलीयो । वीर जिणेसर मिलीयो ॥ गणपति शिष्य गुण गावे । मन वंबित फल पावे ॥ ५ ॥ इति