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[b] चाहिए, सो नाही । बहुरि वह कहै, दूजा जीव होय तौ ताकै स्वसंवेदन कहिये एक ही परमात्मा है, सो अविद्याकरि ।
बहुत दीखै है । ताका उत्तर - जो जीव तो बहुत हैं, ताईं एक अविद्याकरि दीखै है । जो तू कहै 'मोसिवाय दूजा कोई नांही ' तौ दूजा भी कहै, मोसिवाय और कोई नांही । तौ एकै कहै सर्वशून्यता आवै है। जो कहै ' मोसिवाई। दूजा है कि नाही ? ऐसा संशय है । तो अद्वैतका भी निर्णय न होयगा । जो कहै, ' आगमते एक पुरुपकी सिद्धी है ' ताकू कहिये, हमारे आगमते नानापुरुपकी सिद्धि है । प्रत्यक्ष प्रमाणतें हमारा आगम तौ सिद्ध हो है । अर एक
नि का | पुरुष कहनहारा आगम प्रत्यक्षप्रमाणते मिले नाही । बहुरि जैसे वचन अजीव है, तैसें अजीव भी पृथ्वी आदि बहुत पान | हैं । बहुरि जीवकै कायादिककी क्रियारूप आस्रव है । बहुरि बंध है सो पुरुपका भी धर्म है । जाते जडका ही धर्म है। होय तौ पुरुप बंधका फल काहेळू पावै । बहुरि संवर निर्जरा मोक्ष है ते भी जीवके धर्म है । ऐसें पांचौंही तत्त्व जीव अजीव इनि दोऊनिके धर्म है ते श्रद्धानके ज्ञानके चारित्रके विपय हैं । अन्य सर्वविपय इनिमें अंतर्भूत हैं।
आगें कहै हैं, कि, याप्रकार कहे जे सम्यग्दर्शनादिक तथा जीवादिक तत्त्व तिनिका लोकव्यवहारवि व्यभिचार आवै। १ हैं। नाममात्रकूँ भी जीव कहै हैं । स्थापनामात्रकू भी जीव कहै हैं । द्रव्यकू भी जीव कहै है । भावकू भी जीव कहै है । तातै
तिनिका यथार्थस्वरूप समझें विना अन्यथापना आव है। ताके निराकरण अर्थ सूत्र कहै हैं
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नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्न्यासः ॥५॥ याका अर्थ-नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव इनि च्यारिनिकार तिनि जीवादिकपदार्थनिका न्यास कहिये निक्षेप है।। जो वस्तुमें जो गुण न पाईए तावि लोकव्यवहारप्रवृत्तिके आर्थि अपने उपयोग” नाम करना, ताकू नाम कहिये। इहां गुणगत द्रव्य कर्म जाति ए सर्व भी ग्रहण करणा। तहां जातिद्वार नाम तो जैसे गऊ अश्व घट हैं। गुणद्वार जैसे काहूकू धवलगुणकै द्वार धवल कहिये। कर्मद्वार जैसें चलतेक चलता कहिये । द्रव्यद्वार जैसे कुंडल द्रव्य पहरै होय, ताकू कुंडली कहिये, तथा दंड लिये होय ता· दंडी कहिये । इनिविना वक्ता इच्छातै वस्तुका नाम धरै, ताईं नामनिक्षेप कहिये। जैसे पुरुपका हाथी- सिंह नाम धन्या तहां हाथीके तथा सिंहके द्रव्य गुण क्रिया जाति कछु भी न पाइये, तहां वक्ताकी इच्छा ही प्रधान है। इहां कोई पूछै- नामका व्यवहार अनादिरूढ है, जैसे जाति ऐसा जातीका नाम, गुण ऐसा गुणका नाम, कर्म ऐसा कर्मका नाम इत्यादि ए नाम कैसै है ? ताका उत्तर-जो, अनादिहीते वक्ता हैं, अनादिहीत ये नाम हैं। प्रधानगुणपणांका विशेप हैं, तहां वक्ता वस्तुके गुण आदि प्रधानकार किसीका नाम कहै, तहां तौ