________________
॥श्री वीतरागाय नमः॥ श्री सर्वार्थासद्धि-वचनिका-टीका-पडित जयचदजी कृताः--
सहायक दातार श्री. शिवलाल माणिकचंद कोठारी जीका परिचयःसर्वार्थसिद्धि
प. पू. श्री १०८ चा. च. आचार्यवर्य शातिसागर महाराजके आदेशले वीरसंवत २४८० के पर्युपणपर्वमें फलटणमें " श्री श्रुतभाडार टीका और ग्रंथप्रकाशन समिति" की स्थापना चा. च. श्री १०८ आचार्य शातिसागर दि. जैन जिनवाणी जीर्णोद्धारक संस्थाकी तरफसे हुई
उस वख्त आपका शुभागमन धर्मसाधनाके लिए फलटणमें हुवा आचार्यश्रीके धर्मोपदेशका असर आपके ऊपर पडा,
जिनशासनके उद्धारका कार्य स्वाध्याय सुविधाके द्वारा करनेकी आचार्यश्रीकी योजनाम आप तत्काल स्वयं दानशूर बनके । सहकारी हो गये। जिससे इस योजनाके तीसरे ग्रंथका छपाई खर्चका बोझ बडे भक्तिभावसे आपने उठाया।
आप उत्तर सातारा जिलेके एक 'वुध' नामके छोटे ग्रासके निवासी है । आपका शुभ जन्म दि. २१-४-१९१४ के शुभ दिन हुवा । बचपनसे मातापिताके वियोगके कारण और गरिवीके कारण आपका पहला जीवन अत्यंत कष्टदायक तथा पूरी शिक्षाके विना विताया गया। आपके चाचाजी श्री. जिवराज गुलावचंद कोठारीजीका ही कुछ आधार था। लेकिन हिंमतके आधारपर ही स्वावलंबी बनकर और महत्त्वाकांक्षा रखकर बम्बईमें आपने अपनी हरप्रकारकी उन्नती कर ली। वचपनसेही धर्मपर श्रद्धा होनेके कारण आप देवपूजा अर्चा, व्रतोपासना, जिनविवप्रतिष्ठा, जिनमंदिर बनाने में सहायता, ज्ञानदान वगैरहसे धर्मोपार्जन करते आये हैं।
श्री. जिवराज निहालचंद शहा, गुणवरेकरकी सुकन्या सौ. लीलावती आपकी आदर्श धर्मपत्नी बनकर आपके हरएक कार्यमें सहायता और विशेष प्रेरणा दे रही हैं।
आपने श्री सर्वार्थसिद्धि-वचनिका नामक तत्वविवेचनात्मक ग्रंथके प्रकाशनके लिये लगभग रु. २००० प्रदान करके जो अपूर्व । सहयोग दिया है, इसलिये आप अनेक धन्यवादके लिये पात्र हैं।
संपादकीय निवेदन प. चा. च. आचार्यवर्य श्री १०८ शातिसागर दि. जैन जिनवाणी जीर्णोद्वारक सस्था प्रमाणित "श्रुतभाडार और प्रथप्रकाशन समिति" फलटणकी ओरसे प्रकाशित हुये इस सर्वार्थसिद्धि प्रथका प्रूफसशोधनादि कार्य करनेका सौभाग्य आचार्यश्रीके शुभाशिर्वादसे मुझे प्राप्त हुआ सो मैने उस कार्यको बडी सावधानीसे किया है तो भी प्रमादवश दृष्टिदोप आदिकारणोंसे अशुद्धि रह जाना सभव है सो विज्ञजन सुधारकर पढनेकी कृपा करे.
आपका नम्र प. अभयकुमार शिवगौडा पाटील शास्त्री, रागोलीकर
धर्माध्यापक ऐ. प. दि. जैन पाठशाला, वारामती.