________________
390.00000*
सर्वार्थ
पान
bणाके ग्रंथ रचे । तत्त्वार्थसूत्र, पंचास्तिकाय, प्रवचनसार, समयसार, मूलाचार, गोमटसार, त्रिलोकसार, लब्धिसार, क्षपणा ।
सार, आदिक तथा तिनिका अर्थ अविच्छेद होनेके अर्थि तिनिकी टीका करी। बहुरि दूसरा सेनसंप्रदायमैं भूतबली, पुप्पः । दंत, वृपभलेन, सिद्धसेन, समंतभद्र, जिनसेन, गुणभद्र आदि बडे बडे आचार्य भये। तिनि पखंडसूत्र, धवल, जयधवल, महाधवल तथा प्राकृत आदिपुराण आदि ग्रंथ रचे। तथा सिद्धसेन, समंतभद्र आदि स्याद्वादविद्याके अधिकारी भये।
वचतत्त्वार्थसूत्रनिकी महाभाष्य रची। और ग्रंथ बडे बडे रचे । जिनसेन. आदिपुराण संस्कृत रच्या। गुणभद्रनै उत्तरपुराण
पुणनिका टी का संस्कृत रच्या। बहुरि इसही संप्रदायमै काष्ठासंघ प्रवा। बहुरि देवसंप्रदायमें अकलंकदेव भये । ते स्याद्वादविद्याके आधिअ. 10 कारी भये। तिनिने प्रमाणप्रकरण रचे । और भी केई भये, तिनिने बडे बडे ग्रंथ रचे । सोमदेवनें यशस्तिलक काव्य
कीया। बहुरि सिंहसंप्रदायमैं वादीभसिंह आदि मुनि भये। तिनि. बडे बडे ग्रंथ बणाये। ऐसे च्यारोंही संप्रदायमै यथार्थ प्ररूपणा तथा आचार घल्या आया। बहुरि अब इस निकृष्टकालमैं दिगंबरनिका संप्रदायमै यथावत् आचारका तौ अभावही है। जो कहीं है तो दूर क्षेत्रमें होगा। बहुरि मोक्षमार्गकी प्ररूपणा तौ ग्रंथनिके माहात्म्यते वतॆ है। तहां मेरै ऐसा विचार भया; जो श्रीउमास्वामिकृत दशाध्यायीरूप तत्त्वार्थशास्त्र है, ताकी संस्कृतटीका तो गंधहस्तिमहाभाष्य है। अर लघुटीका सर्वार्थसिद्धि, तत्त्वार्थवार्तिक-ताकू राजवार्तिक भी कहै है -तथा श्लोकवार्तिक है। ते तो पंडितनिके समझनें पढने लायक है। मंदबुद्धिनिका प्रवेश नाही। तातें याकी संक्षेपार्थरूप देशभापामय वचनिका करिये तो मंदिबुद्धि हू वांचि समझै । तत्त्वार्थकी श्रद्धा करै तौ बडा उपकार है। यह जानि वचनिकाका प्रारंभ कीया है। तहां मुख्य तौ सर्वार्थसिद्धि नाम संस्कृत टीकाका आश्रय है। बहुरि जहां जहां विशेष लिख्या है सो तत्त्वार्थवार्तिक श्लोकवार्तिकका आश्रय जानना। यावि कहीं भूलि चूक होय तो विशेषज्ञानी सोधियो ॥ ___ तहां प्रथम ही सर्वार्थसिद्धिटीकाकार मंगल अर्थि आप्तका असाधारणविशेपणरूप श्लोक रच्या है, सो लिखिये हैं ॥
मोक्षमार्गस्य नेतारं । भेत्तारं कर्मभूभृताम् ॥ ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां । वन्दे तद्गुणलब्धये ॥ १॥
याका अर्थ-मोक्षमार्गके प्रवर्तावनहारे, कर्मरूप पर्वतके भेदनहारे, समस्ततत्त्वनिके जानानहारेको मेरै तिनि गुणनकी प्राप्तीके अर्थि में वंदौ हौं।