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पान
। याकरी सो दर्शन, इहां करणसाधन भया । बहुरि · दृष्टिमात्रं ' कहिये श्रद्धाना सो दर्शन, इहां भावसाधन भया। दर्शन-11 क्रियाहीनं दर्शन कह्या । ऐसे ही जानाति ' कहिये जो जानै सो ज्ञान, इहां कर्तृसाधन भया । जाननेवाला आत्मा
हीकू ज्ञान कह्या । बहुरि ' ज्ञायते अनेन ज्ञानं ' जाकरि जानिये सो ज्ञान, इहां करणसाधन भया। बहुरि ' ज्ञाप्तिमात्रं
ही ज्ञानं ' जाननां सो ज्ञान, इहां भावसाधन भया। जाननरूप क्रिया ज्ञान कह्या । बहुरि 'चरति इति चारित्रं' इहां सर्वार्थ
व चआचरण कर सो चारित्र है, ऐसे कर्तृसाधन भया । जाते आत्मा ही चारित्र है। वहरि ‘चर्यते अनेन' इहां जाकार
निका टी का o आचरण करिये सो चारित्र है, ऐसे करणसाधन भया । बहुरि 'चरणमात्रं चारित्रं' इहां भावसाधन भया। ऐसे
आचरनेहीकू चारित्र कह्या ॥
इहां अन्यवादी सर्वथा एकांती तर्क करै-जो ऐसे कहते सो ही कर्ता, सोही करण आया। सो तो विरुद्ध है। विरुद्ध होय भाव एकळू होय नांही। ताकू कहिये, तेरै सर्वथा एकांत पक्ष है, जाते विरोध भासै है । स्याद्वादीनिकै परिणामपरिणामीकै भेदविवक्षाकरि विरोध नाही है। जैसे अग्नि अपने दाहपरिणामकरि इंधनळू दग्ध करै है तैसें इहां भी जाननां। ऐसे | कह्या-जो कर्ता करण क्रियारूप तीन भाव ते पर्यायपर्यायीकै एकपणां अनेकपणांप्रति अनेकांतकी विवक्षाकरि स्वतंत्रपरतंत्रकी विवक्षा एक भी वस्तुवि अनेक स्वतंत्र कर्ता परतंत्र करणादि भाववि विरोध नाही है। बहुरि इहां कोई पूछे ज्ञानका ग्रहण आदिवि चाहिये । जाते ज्ञानकरि पहलै जानिये, पीछै ताविपें श्रद्धान होय है। वहुरि व्याकरणका ऐसा न्याय है जो द्वंद्वसमासवि जाके अल्प अक्षर होय सो पहली कहनां । ताळू कहिये यह युक्त नांही। दर्शन ज्ञानकी एककाल उत्पत्ति हैं। जा समय दर्शनमोहका उपशम तथा क्षयोपशम तथा क्षयतै आत्माकै सम्यग्दर्शन भाव होय है, ताही समय मतिअज्ञान श्रुतअज्ञानको अभाव होय, मतिज्ञान श्रुतज्ञान होय है। जैसे सूर्यके बादला दूर होते प्रताप प्रकाश दोऊ एककाल प्रकट होय तैसें इहां भी जाननां । बहुरि व्याकरणका न्याय है, जो जाके अल्प अक्षर होय, तातें जो पूज्य प्रधान होय सो पहली आवै । सो ज्ञानकू सम्यग्दर्शन सम्यक्रूप करै है, तब सम्यग्ज्ञान नाम पावै हैं। तातें सम्यग्दर्शन पूज्य प्रधान है। तातें पहले सम्यग्दर्शन ही चाहिये । वहुरि सम्यग्ज्ञानपूर्वक चारित्र सम्यक् होय हैं। तातें चारित्रकै पहलै ज्ञान कहा ॥ बहुरि मोक्ष सर्वकर्मका अत्यंत अभाव होय तारूं कहिये। वहरि ताकी प्राप्तिका उपाय ताकू मार्ग कहिये। ऐसे मोक्षमार्गशब्दका अर्थ जाननां ॥ | इहां मार्गशब्दकै एकवचन कह्या, सो सम्यग्दर्शनादिक तीन हैं, तिनिकी एकता होय सो साक्षत् मोक्षमार्ग है ऐसे ३ जनावनेके अर्थि है। जुदे जुदे मोक्षमार्ग नाही। इहां साक्षात्पदतें ऐसा जनावै है, जो तीनुनिका एकदेश परंपरा मोक्षका