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दम्यादी नामक नाई धनदत्त शेठ के पुत्र के लिये ले कर आया. और धनदत्त शेठ ने उस नाई की नलि नान्ति (अबी तरह से) खातिर करी.और फिर शेठ ने नाई से पूग कि,
आप प्रसन्न हुए ? तब नाई ने कहा कि,नहीं. फिर उसरे दिन शेठ ने बहुत अच्छीजान्ति से
वरादिक पकवान खिलाए और पूग कि, राजाजी! अब तो प्रसन्न हुए हो? तब नाई ने उत्तर दिया कि, नहीं इसी प्रकार से फिर तीसरे दिन शेठ ने विविध प्रकार की अर्थात् नान्ति २ की वस्तुएं मोतीचूर और मिलाई, बादाम, पिस्तों के बने हुए मोदक अर्थात् व
आदिक नोजन करवाये और फिर पूग कि, जी! अब तो प्रसन्न हो? नाई ने कहा कि,नहीं. तब शेठजी लाचार हुए, और उस नाई को विदा किया.